स्मृतियां कभी बोझ नहीं होतीं…
डाॅ. सुरेश कुमार
तहलका 24×7
बात पिछले कई दिनों पहले की है, जब बारिश लगातार हो रही थी। पेड़ की पत्तियां बारिश की बूंदे पाकर अंगड़ाइयां ले रही थीं। मौसम सुहावना था। रुक-रुककर बारिश हो रही थी। इस बारिश ने मेरे कदमों को रोक दिया। इसी बीच घर में बैठा तो आलमारियों की तरफ नज़र पड़ी और पढ़ाई के पुराने दिन याद आने लगे। मेरे समझ से हर किसी को यदि उनके पुराने लम्हें याद आने लगे तो रोकना नहीं चाहिए, बल्कि आने देना चाहिए।
याद आने पर स्मृतियां फिर से ताज़ा हो जाती हैं। एक विचार आ रहा होता है तो दूसरा जा रहा होता है। उन विचारों में अच्छे विचारों को सहेज पाना काफी मुश्किल होता है। लेकिन नामुमकिन नहीं होता। पढ़ाई के उन पुराने दिनों की यादों में लौट गया। कॉलेज के इण्टरमीडिएट वाली क्लास के दिन याद आने लगे। आलमारी की किताब और कापियों के बीच मे हाथ फेरा तो कुछ स्मृतियां किताब और कॉपी के बीच लिपटी पड़ी थीं। जिसे निकाला और उसके तहखाने में झांककर देखने लगा। निगाहे टिकी रह गई। जी भरकर देखा और मन खुश हो गया। तब अपने आपको रोक नहीं पाया। दनादन एक-एक पेज को पलटते हुए मोबाइल निकला और कैमरा ऑन कर सबको कैद कर लिया। पढ़ाई के समय घर पर मोबाइल तो थी लेकिन मेरे पास नहीं होती थी। जो उन दिनों लिखाई-पढ़ाई के दौरान आप ने जो बताया और सिखाया था, उसी को दूध की तरह सफेद पन्नो पर उकेरने की कोशिश करता रहा, सीखता रहा। फिर भी आपकी तरह तो नहीं बना पाता था। अपने द्वारा बनाए गए चित्रों को आपसे चेक कराते समय कमियों को बता देना, और वेरी गुड दे देना तो उससे और अधिक काम करने और बनाने के प्रति बल मिल जाता रहा। स्मृतियां कभी बोझ नही होती हैं। उसमें बड़ा गहन अनुभव छिपा होता है। जो आज भी सम्बल देती है।