रमज़ान का महीना अल्लाह का महीना है : मौलाना अबरार
जौनपुर।
हाजी जियाउद्दीन खान
तहलका 24×7
रमज़ान-अल-मुबारक का महीना अल्लाह का महीना है, जो बरकत और फजीलत वाला है। उसने तुम्हारे लिए ग्यारह महीने छोड़े हैं, जिनमें तुम खाओ-पीओ और हर तरह के सुख भोगो। लेकिन, उसने एक महीना अपने लिए खास बनाया है। यह बातें मौलाना अबरार अहमद नदवी ने कही।
उन्होंने आगे कहा कि रमज़ान को “सैय्यद-अल-शहूर” कहा गया है, जिसका अर्थ है सभी महीनों का प्रमुख। यह महीना बेशुमार रहमतों का महीना है। इन दिनों ईमानदारी से उपवास करने वालों को विशेष आध्यात्मिक आशीर्वाद प्राप्त होता है। उनकी प्रार्थनाएं सुनी जाती हैं। उन पर अनवार के दरवाज़े खुलते रहते हैं। दृष्टि और प्रेरणा का आशीर्वाद मिलता है। सबसे बढ़कर उन्हें ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस महीने में हर अच्छे काम का सवाब कई गुना बढ़ जाता है।
जब रोजा ईमान और जवाबदेही की शर्त के साथ रखा जाता है तो उसकी दुआओं से पिछले सभी गुनाह माफ हो जाते हैं। इस महीने में एक नेकी एक फर्ज के बराबर होती है। एक फर्ज सत्तर फर्ज के बराबर होता है। इस महीने में शब-ए-कद्र नामक एक रात को हजारों महीनों से बेहतर माना जाता है। यह सब्र का महीना है और सब्र का इनाम जन्नत के रूप में मिलेगा। रमज़ान का महीना रहम और भलाई का महीना है। इस महीने में मोमिन की रिज़्क़ (आय) बढ़ा दी जाती है। जरा सोचिए कि मुबारक के महीने में मामूली आय वाले व्यक्ति को भी खुले हाथों से खर्च करने में कोई दिक्कत महसूस नहीं होती।
रमज़ान के मुबारक महीने में ऐसा महसूस होता है जैसे हर जगह, बाजारों में रहमतें उतरती हैं, मस्जिदें मुसलमानों और ज़कारीनों की बहुतायत से भरी रहती हैं। कुछ लोग कुरान को याद कर रहे हैं, जहां दिल को शांति मिलती है। रमज़ान के महीने को तीन भागों में बांटा गया है। पहले रमज़ान से 10वें रमज़ान तक के पहले दस दिन रहमत, 11वें रमज़ान से 20वें रमज़ान तक को माफ़ी के लिए, और तीसरा और आखिरी दशक नरक से मुक्ति का है। आखरी दास दिनों की रातों में से एक रात शब-अल-कद्र की है, जिसके बारे में अल्लाह का कहना है कि इस एक रात में इबादत करने का सवाब हजारों महीनों की रातों से ज़यादा है।
पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब ने कहा कि रमज़ान के आखिरी दशक में शबे क़द्र की रात की तलाश करें। जब लैलतुल क़द्र आता है, तो जिब्राइल स्वर्गदूतों के साथ उतरते हैं और जो खड़ा या बैठा है, अल्लाह को याद कर रहा है और नवाफ़िल की नमाजें पढ़ रहा हो वे उसके लिए दया की प्रार्थना करते हैं। कोई बिना किसी बहाने या बीमारी के रमज़ान का रोज़ा छोड़ देता है, तो भले ही वह जीवन भर रोज़ा रखे, लेकिन वह इसकी भरपाई नहीं कर सकता। रोजे की हालत में चुगली, गाली-गलौज, ताने देना, गलत बयानी जैसे सभी गुनाहों से बचना चाहिए। नहीं तो भूखे-प्यासे रहने के अलावा कुछ हासिल नहीं होगा।