एसबीआई को एससी ने दिया अल्टीमेटम
# इलेक्टोरल बान्ड मामले में 12 मार्च तक दिया समय
नई दिल्ली।
स्पेशल डेस्क
तहलका 24×7
इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी देने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को 12 मार्च तक का अल्टीमेटम दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को भी एसबीआई से मिले ब्यौरे को 15 मार्च को शाम पांच बजे तक अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित करने का निर्देश दिया। सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की संविधान पीठ ने सोमवार को 40 मिनट की सुनवाई के बाद यह फैसला सुनाया।
सोमवार को हुई सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने एसबीआई पर बड़ी टिप्पणी की। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि हमने आपको डेटा मिलान के लिए नहीं कहा था, आप आदेश का पालन कीजिए। पीठ में शामिल जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा कि आपको सिर्फ डेटा सील कवर से निकालना है और भेजना है। सीजेआई ने एसबीआई से ये भी पूछा कि आपने पिछले 26 दिनों में क्या काम किया? कितना डेटा मिलान किया? मिलान के लिए समय मांगना सही नहीं है।
पीठ ने अपने आदेश में कहा कि एसबीआई को अपने चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर का एफिडेविट फाइल करना होगा, जिसमें लिखा होगा कि एसबीआई दिए गए आदेशों का पालन करेगी। हम अभी कोर्ई कंटेम्प्ट नहीं लगा रहे हैं। अगर आज के आदेश का वक्त रहते पालन नहीं किया गया तो हम एसबीआई के खिलाफ लीगल एक्शन लेंगे।
बताते चलें कि सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने 15 फरवरी को इलेक्टोरल बॉन्ड की बिक्री पर रोक लगादी थी। साथ ही एसबीआई को 12 अप्रैल 2019 से अब तक खरीदे गए इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी छह मार्च तक चुनाव आयोग को देने का निर्देश दिया था। एसबीआई ने 4 मार्च को सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाकर इसकी जानकारी देने के लिए 30 जून तक की मोहलत मांगी थी।
इसके अलावा सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने कोर्ट एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की उस याचिका पर भी सुनवाई की, जिसमें छह मार्च तक जानकारी नहीं देने पर एसबीआई के खिलाफ अवमानना का केस चलाने की मांग की गई थी।बताते चलें कि संविधान पीठ में सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना के अलावा जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा भी शामिल हैं।
चुनावी या इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम 2017 के बजट में उस वक्त के वित्त मंत्री अरुण जेटली ने पेश की थी। दो जनवरी 2018 को केंद्र सरकार ने इसे नोटिफाई किया। ये एक तरह का प्रॉमिसरी नोट होता है। इसे बैंक नोट भी कहते हैं। इसे कोई भी भारतीय नागरिक या कंपनी खरीद सकती है।2017 में अरुण जेटली ने इसे पेश करते वक्त दावा किया था कि इससे राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाली फंडिंग और चुनाव व्यवस्था में पारदर्शिता आएगी।
ब्लैक मनी पर अंकुश लगेगा। स्कीम का विरोध करने वालों का कहना था कि इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने वाले की पहचान जाहिर नहीं की जाती है, इससे ये चुनावों में काले धन के इस्तेमाल का जरिया बन सकते हैं। बाद में योजना को 2017 में ही चुनौती दी गई, लेकिन सुनवाई 2019 में शुरू हुई। 12 अप्रैल 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने सभी पॉलिटिकल पार्टियों को निर्देश दिया कि वे 30 मई 2019 तक एक लिफाफे में चुनावी बॉन्ड से जुड़ी सभी जानकारी चुनाव आयोग को दें। हालांकि, कोर्ट ने इस योजना पर रोक नहीं लगाई। बाद में दिसंबर 2019 में याचिकाकर्ता एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्स (ADR) ने इस योजना पर रोक लगाने के लिए एक आवेदन दिया। इसमें मीडिया रिपोर्ट्स के हवाले से बताया गया कि किस तरह चुनावी बॉन्ड योजना पर चुनाव आयोग और रिजर्व बैंक की चिंताओं को केंद्र सरकार ने दरकिनार किया था।
सुप्रीम कोर्ट के रोक लगाने से पहले चुनावी बॉन्ड स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की 29 शाखाओं में मिल रहे थे। इसे खरीदने वाला इसे अपनी पसंद की पार्टी को डोनेट कर सकता था। खरीदने वाला हजार से लेकर एक करोड़ रुपए तक का बॉन्ड खरीद सकता था। इसके लिए उसे बैंक को अपनी पूरी KYC देनी होती। जिस पार्टी को ये बॉन्ड डोनेट किया जाता, उसे पिछले लोकसभा या विधानसभा चुनाव में कम से कम प्रतिशत वोट मिलना अनिवार्य था। डोनर के बॉन्ड डोनेट करने के 15 दिन के अंदर, बॉन्ड पाने वाला राजनीतिक दल इसे चुनाव आयोग द्वारा वेरिफाइड बैंक अकाउंट से कैश करवा लेता था। नियमानुसार कोई भी भारतीय इसे खरीद सकता था। बॉन्ड खरीदने वाले की पहचान गुप्त रहती थी। इसे खरीदने वाले व्यक्ति को टैक्स में रिबेट भी मिलता था। ये बॉन्ड जारी करने के बाद 15 दिन तक वैलिड रहते थे।