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Tuesday, April 30, 2024

जौनपुर : नहीं रहे सूफी संत हजरत मौलाना जफर अहमद सिद्दिकी

जौनपुर : नहीं रहे सूफी संत हजरत मौलाना जफर अहमद सिद्दिकी

# धर्मगुरु के आखिरी सफर में उमड़ा जन सैलाब, लोगों ने दी अश्रुपूरित श्रद्धांजलि

जौनपुर।
विश्व प्रकाश श्रीवास्तव
तहलका 24×7
                   जनपद के सर्वप्रिय सूफी संत हजरत मौलाना जफर अहमद सिद्दिकी के निधन से पूरे जनपद में शोक की लहर दौड़ गयी। धर्मगुरु हजरत मौलाना जफर साहब के आखिरी सफर में जन सैलाब उमड़ पड़ा, लोगों ने अश्रुपूरित श्रद्धांजलि देकर विदाई दी
हजरत मौलाना की जीवनी पर प्रकाश डालते हुए जौनपुर के इतिहास के जानकार मोहम्मद इरफान ने बताया कि हजरत मौलाना का जन्म मुल्ला टोला में सन 9 फरवरी सन् 1928 को हुआ था। इनके पिता का नाम हजरत मौलाना अब्दुल हुसैन था, यह लोग मुगल पीरियड से जौनपुर के मुल्ला टोला मोहल्ले में आबाद थे।
उनकी प्राथमिक शिक्षा दीक्षा उनके पुश्तैनी मदरसा करामतीया में हुई। हजरत मौलाना ने शुरू से ही इस्लामिक साहित्य व शिक्षा पर परंपरागत इल्म हासिल किया।
मौलाना करामत अली के भाई मौलाना रज्जब अली के यह पोते थे। मौलाना अब्दुल अजीज एक बहुत बड़े आलिम थे हजरत मौलाना सूफी जफर अहमद सिद्दीकी उनके छात्र थे, शुरुआती शिक्षा दीक्षा उन्होंने वहीं पर हासिल की उसके बाद अपने वालिद व परदादा के साथ वह बांग्लादेश भी आते जाते रहते थे हालांकि उनके बचपन में अविभाजित भारत में बांग्लादेश भारत का एक अभिन्न अंग था इसलिए उनका सफर बहुत सरल हुआ करता था। आजादी और बंटवारे के बाद जब बांग्लादेश अलग हुआ तब भी वह वहां पर शिक्षा देने के लिए जाया करते थे, इसके साथ ही उनका आसाम भी आना जाना लगा रहता था।

हजरत मौलाना जौनपुर स्थित ऐतिहासिक बड़ी मस्जिद के इमाम थे एवं उनके ही निगरानी में पूर्वी गेट जो नेस्तनाबूद हो चुका था उसका पुनर्निर्माण हुआ।इसके साथ साथ वह जौनपुर स्थित शाही ईदगाह के भी इमाम थे और लगभग आधे दशक तक जौनपुर की आवाम ने उनके पीछे ईदेन की नमाज पढ़ी, उनका जीवन बहुत ही सादगी भरा था और वह हमेशा मिलजुल कर रहने व एकता का पैगाम देते थे।
वह एक पहुंचे हुए सूफी संत भी थे बताते हैं कि सन 1982 के बाढ़ में जब ईद की नमाज का ऐलान शाही ईदगाह मे अदा करने लिए कर दिया गया तो तत्कालीन डीएम मीरा यादव के हाथ पांव फूल गए कि इतने लोगों को हम नदी से नाव के जरिए कैसे पार करेंगे, लेकिन हजरत की दुआ के बाद नदी का पानी रातों-रात घट गया और लोगों ने ईद की नमाज़ निर्विघ्न अदा की। लोग दूर-दूर से उनसे दुआएं कराने के लिए आया करते थे।

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