नर्सिंगहोम्स के मानक में खेल से रेफरी ही लापता, शिकायती जांच में होती है लीपापोती!
# बानगी जौनपुर की: जिला मुख्यालय के शहरी इलाके में हैं 250 से अधिक निजी अस्पताल, इनमें तमाम के पास आवासीय नक्से पर चल रही इलाज की दुकान, सड़कों पर वाहन स्टैंड बना और स्टैंड वाले स्थान पर मेडिकल स्टोर, जहां बिकती हैं निजी एमआरपी की दवाएं, इसकी जांच के जिम्मेदार जिले भर में वसूली के पटवारी बने।
# मेडिकल वेस्ट (अस्पताल का कचरा) इसमें इंसानी रक्त, मांस, हड्डी, मवाद आखिर जाता कहां है? ये सवाल सचेत लोगों को कभी-कभी मथता है, क्योंकि इस कचरे को सामान्य कचरे के साथ फेंकने और जलाने पर उसके धुएं से दूषित होती है शहर की आब- ओ-हवा और बढ़ती है मरीजों की संख्या।
कैलाश सिंह
जौनपुर/लखनऊ।
तहलका 24×7
विगत तीन अप्रैल को जिले के जफराबाद इलाके के निवासी जिस युवक शुभम निषाद की मौत को लेकर हंगामा हुआ और बाद में डीएम के निर्देश पर सीएमओ ने जांच टीम लगाई, उसमें पीड़ित को न्याय मिलने की बजाय मृतक के परिजनों को ही दोषी करार दे दिया गया, जबकि डीएम को दिये पत्र में साफ़ लिखा गया था कि अस्पताल के प्रबन्धक ने उनके बेटे का शव सुबह देने को कहा और उसी ने बताया था की तुम्हारा बेटा मर गया है।

यानी तीमारदार किस तरह दोषी हुआ? इस रिपोर्ट के साथ उसके शिकायती पत्र की कॉपी भी लगाई जा रही है ताकि आमजन के साथ डीएम और सीएमओ भी पढ़ लें।पत्र पढ़ने से साफ़ जाहिर हो रहा है कि जांच टीम ने मौत का दिन और समय को अहम मानकर पोस्टमार्टम रिपोर्ट से अपनी जांच रिपोर्ट पूरी कर ली और उस अस्पताल की तरफ़ से गुड फील कर लिया है। इतना ही नहीं, हंगामे के समय से लेकर अब तक निषाद पार्टी और उसके मुखिया का भी पता नहीं चला। इन्हें अपना नेता मानने वाले पीड़ित परिवार की खोज खबर लेने कोई नहीं आया।

जिस निजी अस्पताल में शुभम की मौत हुई उसे मेडिकल महकमे के लोग ‘कुरैशी का बाडा’ बोलते हैं।
मृतक शुभम निषाद के परिजनों ने शिकायती पत्र में जिन दो अस्पतालों का जिक्र किया है उनके यहां नर्सिंगहोम के मानक गुमशुदा हैं, बाकी में तो और खस्ताहाल हैं, उनके इर्द-गिर्द कुछ ऐसे मोबाइल अस्पताल हैं जो कथित बड़े अस्पतालों में ओटी सहायक का काम करके निकले तो सर्जन बन बैठे।एक ऐसे ही कथित सर्जन ने प्रसूता महिला का पेट फाड़ने के बाद बच्चे को बाहर निकालकर लहराते हुए उसका बनाया वीडियो सोशल मीडिया पर जारी किया, तब पैसे की नींद से जागा स्वास्थ्य महकमा भागते हुए पहुंचा लेकिन तब तक वह कथित सर्जन सड़क की दूसरी पटरी पर चम्पत हो चुका था। विभाग ने सम्बन्धित भवन को सील करके अपना काम पूरा कर लिया।

इसी नईगंज में एक ऐसा अस्पताल है जहां दिनभर दिखने वाले मरीजों के बेड शाम होते ही रंगीन मिज़ाज़ लोगों के लिए बिस्तर बन जाते हैं। स्टाफ को दिहाड़ी वेतन देने को कालगर्ल कबाब के साथ जाम छलकाने लगती हैं, लेकिन किराए के इस भवन में बोर्ड नर्सिंगहोम का ही रहता है। अब रहा सवाल तहलका टीम द्वारा निजी अस्पतालों में व्याप्त दुर्वव्यवस्था को इंगित करने का तो वह जस की तस है। उसमें कमी आने की बजाय इजाफा होता जा रहा है। मरीजों के लिए ऐसे तमाम अस्पताल इंसानी स्लाटर हाऊस बने हुए हैं, जहां उनकी जेब कटती है। मेडिकल वेस्ट से सम्बन्धित स्टोरी अगले एपिशोड में मिलेगी, लेकिन तमाम नर्सिग होम में वाहन स्टैंड न होने से सड़क जाम आम बात है।

मानक को धता बताने वाले इन अस्पतालों में खुद की एमआरपी वाली 10 रुपये की दवा सौ में धड़ल्ले से बेची जाती है। इसकी जांच के जिम्मेदार अधिकारी जिलेभर में करीब डेढ़ हज़ार मेडिकल स्टोर पर प्रतिबन्धित व नकली दवाएं बिकवाने की छूट की एवज वसूली में मशगूल हैं। विभिन्न जांच की रिपोर्ट पैथालॉजिस्ट वही देते हैं जो डॉक्टर चाहते हैं। क्योंकि इन्हीं रिपोर्ट से मरीज को डराकर आर्थिक दोहन होता है। इस प्रकार की घटनाओं की बानगी भी आगे के एपिशोड में मिलती रहेगी।आख़िर में एक विशेष बानगी जानिए, गोरखपुर-प्रयागराज हाईवे पर जौनपुर शहर में मैहर मन्दिर के निकट एक सर्जन ऐसा है जो अपनी रंगीन मिजाजी के लिए इतना मशहूर है कि उसकी बीवी हर हफ़्ते कम से कम एक बार जरूर पीटती है।

उसने अपने ही अप्रशिक्षित झोलाछाप चिकित्सक द्वारा भेजी गई महिला के पथरी का ऑपरेशन करने से पूर्व अर्धबेहोशी में उसकी अस्मत लूट ली।महिला ने झोलाछाप के खिलाफ केस किया तो उसे साढ़े चार लाख रुपये देकर उसे अपना गला छुड़ाना पड़ा। यह घटना पिछले वर्षों की है। इस रंगीन मिज़ाज़ डॉक्टर की दोस्ती जिले के पुरोहित गैंग से है जो सैंडविच मसाज का संचालन करता है। इसकी सेवाएं एक माननीय अपने घर पर भी लेते हैं।
क्रमशः………..