शरणार्थी मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी, भारत कोई धर्मशाला नहीं
# श्रीलंकाई नागरिक की याचिका खारिज
नई दिल्ली।
तहलका 24×7
पड़ोसी देशों से शरणार्थियों के आने पर तीखी टिप्पणी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि भारत दुनियाभर से शरणार्थियों को शरण क्यों देगा? सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि देश पहले से ही 140 करोड़ की आबादी से जूझ रहा है। इस दौरान कोर्ट ने यह भी साफ किया कि देश कोई धर्मशाला नहीं है, जो दुनिया भर से शरणार्थियों को शरण दे सके।

जस्टिस के विनोद चंद्रन की पीठ ने सुनवाई की। बैंच ने कहा कि वह श्रीलंकाई नागरिक द्वारा शरण दिए जाने की याचिका पर विचार करने के लिए इच्छुक नहीं है। बता दें कि श्रीलंकाई तमिल का प्रतिनिधित्व करने वाले एक वकील ने पीठ के समक्ष दलील दी कि वह वीजा लेकर भारत आया था और इस बात पर जोर दिया कि अपने देश में उसकी जान को खतरा है।जस्टिस दत्ता ने कहा, क्या भारत को दुनिया भर से शरणार्थियों की मेजबानी करनी है? हम 140 करोड़ लोगों के साथ जूझ कर रहे हैं।

यह कोई धर्मशाला नहीं है, जहां हम दुनिया भर से आए विदेशी नागरिकों का स्वागत कर सकें। अदालत ने पूछा याचिकाकर्ता को यहां बसने का क्या अधिकार है?इस पर पीठ को बताया गया कि उसकी पत्नी और बच्चे भारत में बस गए हैं और वह करीब तीन साल से हिरासत में है और निर्वासन की प्रक्रिया शुरू नहीं हुई है। जस्टिस दत्ता ने कहा कि याचिकाकर्ता को कानून के अनुसार हिरासत में लिया गया था और उसकी हिरासत अनुच्छेद 21 का उल्लंघन नहीं करती है।

उन्होंने यह भी बताया कि अनुच्छेद 19 केवल भारतीय नागरिकों के लिए उपलब्ध है। वकील ने पीठ के समक्ष दलील दी कि याचिकाकर्ता के लिए श्रीलंका वापस जाना खतरनाक है और वहां उसे खतरा है। पीठ ने वकील से कहा कि याचिकाकर्ता किसी भी अन्य देश में जा सकता है।

अदालत ने ये टिप्पणियां एक श्रीलंकाई नागरिक की याचिका पर सुनवाई करते हुए की, जिसे 2015 में लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम से जुड़े होने के संदेह में गिरफ्तार किया गया था, जो एक समय श्रीलंका में सक्रिय एक आतंकवादी संगठन था। एक ट्रायल कोर्ट ने उसे गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत दोषी ठहराया और उसे 10 साल जेल की सजा सुनाई। मद्रास हाई कोर्ट ने 2022 में दस साल की सजा को घटाकर सात साल कर दिया और उसे सजा पूरी होते ही देश छोड़ने और निर्वासन से पहले शरणार्थी शिविर में रहने को कहा था।