अजब-गजब: मृत शरीर के करते हैं टुकड़े, फिर गिद्धों को खिलाने की है परंपरा
विशेष रिपोर्ट
तहलका 24×7
मरने के बाद मानव शरीर को या जलाया जाता है, या फिर दफनाया जाता है। लेकिन दुनिया में कुछ जगहें ऐसी भी हैं, जहां पर लाशों के टुकड़े करके गिद्धों को खाने के लिए डाल दिया जाता है।
हिन्दू समाज में जहां लोगों के मृत शरीर को जला दिया जाता है या फिर नदी में प्रवाहित कर दिया जाता है, तो ईसाई और मुस्लिम धर्म में दफनाने की प्रथा सदियों से चली आ रही है। इन सबसे हटकर अंतिम संस्कार को लेकर अजब-गजब परंपराएं भी निभाई जाती हैं। जिन परंपरा के बारे में जानकर कोई भी चौंक जाए। अंतिम संस्कार से जुड़ी एक परंपरा ऐसी भी है जिसे सुनकर बहुतों के होश फाख्ता हो जाते हैं। लोगों की मौत के बाद उनके मृत शरीर के टुकड़े किए जाते हैं, फिर उन्हें गिद्धों को खिला दिया जाता है।
अंतिम संस्कार की इस परंपरा को मानने वाले समुदाय की मान्यता है कि मृत व्यक्ति के शव को गिद्ध जैसे जानवर खाएं तो उनकी उड़ान के साथ उस व्यक्ति की आत्मा भी स्वर्ग पहुंच जाती है। तिब्बत, किंगघई, मंगोलिया में रहने वाले वजरायन बुद्धिस्ट लोग इसे निभाते हैं। अंतिम संस्कार के इस तरीके को स्थानीय लोग झाटोर या आकाश में दफनाना कहते हैं। जिसका पालन हजारों साल पहले से होता चला आ रहा है। शव को जब गिद्धों के सामने खाने के लिए खुले मैदान में रखा जाता है, तब मृतक के रिश्तेदार भी वहां मौजूद होते हैं।
अंतिम संस्कार के इस प्रक्रिया को पूरी करने के लिए शव को शमशान तक जाना होता है, जो एक ऊंचाई वाले इलाके में होता है। वहां लामा (बौद्ध भिक्षु) धूप-बत्ती जलाकर मृत शरीर की पूजा करते हैं। फिर शमशान का एक कर्मचारी उस शव को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटता है।वहां मौजूद दूसरा कर्मचारी उन टुकड़ों को जौ से बने आटे के घोल में डुबोता है और गिद्धों को खाने के लिए डाल देता है।
इस दौरान मृतक के परिजन वहां मौजूद रहते हैं। जब गिद्ध सारा मांस खाकर चले जाते हैं, तब उसके बाद उन हड्डियों को इकठ्ठा करके उनका चूरा किया जाता है। फिर दोबारा हड्डियों के चूर्ण को जौ के आटे और मक्खन में डुबोकर कौओं और बाज को खाने के लिए डाल दिया जाता है। अंतिम संस्कार कि ऐसी ही परम्परा मंगोलिया के भी कुछ इलाको में निभाई जाती है।
अंतिम संस्कार की इतनी विभत्स परंपरा आखिर शुरू कैसे हुई? इस सवाल पर जानकार बताते हैं कि इसके पीछे दो प्रमुख कारण है। वहां पर मृत शरीर को जलाया नहीं जा सकता, क्योंकि तिब्बत काफी ऊंचाई पर स्थित है। वहां पर पेड़ भी नहीं पाए जाते हैं। दूसरी वजह वहां की पथरीली जमीन है, जिसकी खुदाई संभव नहीं है। ऐसे में शरीर को दफनाना भी मुश्किल है।