कोशिश की मासिक काव्य गोष्ठी आयोजित
जौनपुर।
विश्व प्रकाश श्रीवास्तव
तहलका 24×7
साहित्यिक और सांस्कृतिक संस्था कोशिश की मासिक काव्य गोष्ठी बाबू रामेश्वर प्रसाद स्मृति सभागार रासमंडल में दमयंती सिंह की अध्यक्षता में आयोजित की गई। सुमति श्रीवास्तव ने वाणी वंदना से कार्यक्रम की शुरुआत की।गिरीश कुमार गिरीश का मुक्तक ‘किया है भूल पुरखों ने जो दोबारा नहीं होगा, तुम्हारे चाहने से गंगाजल खारा नहीं होगा, खुली आँखों से सपना देखने वालों ये मत भूलों, कभी बँटवारें में फिर से तो बँटवारा नहीं होगा’।देश की ज्वलंत समस्या की ओर संकेत कर गया। रामजीत मिश्र का शेर खुशियाँ न इंतजार करेगीं तुम्हारा दोस्त, खुश हो जा वर्ना एक भी किसी और को चलीं।
जीवन की सच्चाई को दिखा गया तो वहीं अनिल उपाध्याय की रचना जीवन है जंजाल रे भइया, जीवन है जंजाल, गोष्ठी में हास-उल्लास की लहर पैदा कर गई। अशोक मिश्र का दोहा सई-गोमती सिसकती, रोतीं खारा नीर, ठठरी में तेजाब है, अंग-अंग में पीर। नदियों की दुर्दशा का मार्मिक चित्र उकेर गया। जनार्दन अष्ठाना पथिक का गीत एक तुम्हारा न होना क्या-क्या कर जाता है, किल्ले जैसी दीवारों को जर्जर कर जाता है। वियोग जन्य व्यथा का मार्मिक वर्णन कर गया। इसके वाद व्यंग के ख्यात कवि सभाजीत द्विवेदी प्रखर ने जौनपुर के सांस्कृतिक और सामाजिक जीवन का ताना-बाना इन पंक्तियों में प्रस्तुत किया ‘तपस्थली है ऋषि-मुनियों की, अपनी पावन माटी है स्वतंत्रता की चिनगारी ले बलिदानी परिपाटी है। प्रो पीसी विश्वकर्मा का शेर इकबाले जुर्म तो न किया और बात है।
उसने झुका ली अपनी नजर, कुछ न कुछ तो है।मानवीय संवेदना को रुपायित कर गया। प्रो आर.एन.सिंह ने जब पढ़ा वक्त जब भी मिले तो मिला कीजिए समाज में बढती संवाद हीनता की ओर संकेत किया। अंसार जौनपुरी का शेर मोहब्बत से मुझको सुना जा रहा है, जबां नर्म कर ली तो क्या जा रहा है, खूब पसंद किया गया। राजेश पांडेय की कविता पल कितनी कलियां खिलतीं दर्शन से प्रेरित लगी। गोष्ठी में आसिफ फरुखाबादी, सुशील दुबे, विशाल जी, राजेन्द्र प्रसाद सिंह ने प्रतिभाग किया।संचालन जनार्दन अष्ठाना और आभार ज्ञापन डाक्टर विमला सिंह ने किया।