दलबदलुओं की वजह से जिनका कटेगा टिकट, अब उनका क्या??
# भाजपा से आये नेताओं को पचाने में सपा को भी करनी होगी मशक्कत
# जिन्होंने पांच साल क्षेत्र में की है मेहनत, दलबदलुओं ने फेरा पानी…
स्पेशल डेस्क।
रवि शंकर वर्मा
तहलका 24×7
भाजपा छोड़कर सपा में शामिल होने वाले पिछड़ा वर्ग के नेताओं ने चुनावी लड़ाई दिलचस्प बना दी है। हालांकि, अखिलेश यादव ने अब भाजपा से किसी नेता को न लेने के बात कही है। लेकिन अब तक जो 14 नेता सपा में पहुंचे हैं उन्हें समायोजित कर पाना उनके लिए भी मुश्किल होगा। सपा में जाने वाले ज्यादातर विधायक बसपा पृष्ठभूमि के हैं और इनमें भी अधिकतर पिछले चुनाव में ही बसपा या अन्य दलों से भाजपा में आए थे।
सपा को लगता है कि बड़ी संख्या में पिछड़ा वर्ग के नेताओं के भाजपा से उसके पाले में आने से माहौल बनेगा। वहीं भाजपा को लग रहा है कि पांच वर्ष तक सत्ता की मलाई काटकर दलबदल करने वालों की अवसरवादिता जनता समझ रही है, जिसका खामियाजा इन्हें भुगतना पड़ेगा। पर, इस सबके बीच चुनावी तस्वीर दिलचस्प होती जा रही है।
भाजपा ने अपने मौजूदा विधायकों की जीत की संभावना आंकने के लिए कई स्तर पर सर्वे कराए। एजेंसियों के अलावा संगठन, संघ परिवार व कुछ व्यक्तियों के जरिये स्वतंत्र फीडबैक लिया गया। सामान्य फीडबैक यह रहा कि जनता में सरकार विरोधी लहर नहीं है, लेकिन तमाम मौजूदा विधायकों के खिलाफ जबर्दस्त आक्रोश है। क्षेत्र में निष्क्रियता, दूसरे दल से आकर विधायक व मंत्री बनने वालों का भाजपा काडर से तालमेल का अभाव, भ्रष्टाचार, बदजुबानी व दबंगई जैसे कई कारण सामने आए। तीन महीने पहले से ही बड़ी संख्या में विधायकों के टिकट काटे जाने की अटकलें शुरू हो गई थीं। चुनाव की घोषणा होते ही भाजपा में भगदड़ मच गई। पार्टी छोड़ने वाले विधायक व मंत्री दलितों, पिछड़ों, गरीबों व नौजवानों की उपेक्षा का आरोप लगा रहे हैं। वहीं, भाजपा टिकट कटने का अंदाजा होने पर दलबदल का आरोप लगा रही है।