30.1 C
Delhi
Tuesday, April 16, 2024

महत्वपूर्ण वैश्विक भूमिका के मुहाने पर है भारत

महत्वपूर्ण वैश्विक भूमिका के मुहाने पर है भारत

# मंगलेश्वर (मुन्ना) त्रिपाठी की बेब़ाक कलम से…

रूस और युक्रेन के बीच चल युद्ध को ४० दिन बीत गये हैं भारत में प्रगतिशील कहे जाने वाले बुद्धिजीवी भी अब भारत के पंचांग में एक वर्ष पूर्व मुद्रित आशंका को दबे स्वर से मानने भी लगे हैं। मतभिन्नता के कारण देश में “भारत फिर से विश्व गुरु” जैसी अवधारणा को हमेशा एक खेमे ने नकारा है, आज दुनिया भारत की ओर उम्मीद भरी नजरों से देख रही है। जापान के प्रधानमंत्री, अमेरिकी सुरक्षा सलाहकार के ‘डेप्यूट’ , ग्रीस के विदेश मंत्री सहित कई देशों की हस्तियां इस युद्ध में मध्यस्तता को लेकर नई दिल्ली में दस्तक दे चुकी हैं। रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव और ब्रिटेन की विदेश सचिव लिज ट्रस भी दिल्ली आ चुके हैं।

इस समय दुनिया दो हिस्सों में बंटती नजर आ रही है लेकिन, दुनिया का एक दूसरा दृश्य भी है।“यूएनयू वर्ल्ड इंस्टीट्यूट फॉर डेवलपमेंट इकोनॉमिक्स रिसर्च” की एक रिपोर्ट का कहना है कि कोविड दुष्काल ने धरती की आठ प्रतिशत आबादी को फिर से गरीबी के गर्त में धकेल दिया है। इस वैश्विक संस्था के अनुसार विकासशील देशों के ग्रामीण इलाकों में शहरी दुनिया के मुकाबले तीन गुना गरीबी है। अकेले भारत में इस दुष्काल के दौरन २९ करोड़ लोगों को पुन: आर्थिक विपन्नता की सबसे निचली सीढ़ी पर लौटना पड़ा है।

दुष्काल में जब पिछडे़ और विकासशील देशों के नागरिक दम तोड़ रहे थे, तब दुनिया के ठेकेदारों ने अपनी जमीन और आकाश बंद कर दिए थे। एक-दूसरे के लिए भी बेरुखी के आवरण धारण कर लिए थे। लोगों ने ‘ग्लोबल विलेज’ का वादा भुला दिया था। विश्व में पूंजीवादी व्यवस्था के परखच्चे सिर्फ ३० साल में इस तरह बिखरते नजर आएंगे, यह कल्पना १९९० के दशक में दूभर थी। गरीब दुनिया के साथ निर्मम व्यवहार करने वाले पश्चिम के हुक्मरां उस दौरान कोरोना को ‘चीनी वायरस’ कहकर सारी तोहमत पूरब पर डाल देने की जुगत में थे। इस घृणित अभियान के सिरमौर तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप थे।

वैसे यह वायरस न भी आता, तब भी पश्चिम के देश बेपरदा होते जा रहे थे। इराक, अफगानिस्तान, सोमालिया, हैती, यूगोस्लाविया, लीबिया, सीरिया जैसे देश इन तीन दशकों में साम्राज्यवादी शक्तियों के तरह-तरह के हमलों की जद में आकर जन-धन की भारी हानि उठा चुके थे। कुछ देश ऐसे थे, जहां ये बड़े लोग सीधे हमले नहीं कर सके, तो वहां इन्होंने गृहयुद्ध के बीज बोने में कसर नहीं छोड़ी । इराक जैसे खुशहाल देश इनके कारण तबाह हो गए। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में उल्लेख है कि २०२१ के मध्य तक दुनिया भर में ८.४० करोड़ लोगों को दर-बदर होना पड़ा था। इसके सबसे बड़े कारण हमले, गृहयुद्ध अथवा आतंकवाद थे। आक्रामकों अथवा आतंकवादियों के हाथों में हमेशा इन्हीं देशों मंर बने हथियार होते थे। कौन इनकी आपूर्ति कर रहा था? इसके पीछे का मकसद क्या था? वैश्विक सवाल हैं…

सही मायने में यही कारण है कि जब रूस ने सीरिया, क्रीमिया या यूक्रेन पर हमला किया, तो ये देश कुछ नहीं कर सके। युक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की इनके थोथे आश्वासनों के चक्कर में ही इस निरीह अवस्था को प्राप्त हुए हैं। युक्रेन से अब तक तक ४० लाख लोग की दूसरे देशों की ओर पलायन की खबर है। अब, पश्चिमी देशों के दावों की पोल खुल चुकी है, तब उनकी दादागीरी को सही स्थान दिखाने का अवसर आ चुका है। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने पश्चिम के दोमुंहे रवैये की पोल खोलते हुए कहा कि सिर्फ मार्च के महीने में यूरोप के देशों ने रूस से पिछले महीने के मुकाबले १५ प्रतिशत अधिक तेल और गैस आयात किया है। इससे पहले जयशंकर चीन के विदेश मंत्री को करारा जवाब देकर जता चुके हैं कि भारत अब किसी के दबाव में आने वाला नहीं है।

भारत मजबूत है, और सामर्थ्यवान भी.. दुनिया के विभाजन और विश्व युद्ध की कगार पर जाने से रोकने में मध्यस्थ बनकर, कोई नयी उपमा से भी विश्व में अपना झंडा फहरा सकता है।

तहलका संवाद के लिए नीचे क्लिक करे ↓ ↓ ↓ ↓ ↓ ↓ ↓ ↓ ↓ ↓ ↓ ↓

लाईव विजिटर्स

37011727
Total Visitors
565
Live visitors
Loading poll ...

Must Read

Tahalka24x7
Tahalka24x7
तहलका24x7 की मुहिम..."सांसे हो रही है कम, आओ मिलकर पेड़ लगाएं हम" से जुड़े और पर्यावरण संतुलन के लिए एक पौधा अवश्य लगाएं..... ?

पूर्व सांसद के गनर रहे अनीस खान की हत्या

पूर्व सांसद के गनर रहे अनीस खान की हत्या  जौनपुर।  सौरभ आर्य  तहलका 24x7            पूर्व सांसद धनंजय सिंह...

More Articles Like This