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Thursday, April 25, 2024

लखनऊ : आयुष कॉलेजों में वर्षों से चल रहा है दाखिले का ठेका, जालसाजों के हौसले बुलंद

लखनऊ : आयुष कॉलेजों में वर्षों से चल रहा है दाखिले का ठेका, जालसाजों के हौसले बुलंद

लखनऊ।
आर यस वर्मा
तहलका 24×7
            आयुष कॉलेजों में दाखिले के नाम पर वर्षों से ठेका प्रथा चल रही है। जिस गति से सख्ती होती है, उसी गति से रैकेट अपनी चाल बदल लेता है। नीट के जरिए केंद्रीयकृत दाखिले की व्यवस्था हुई तो जालसाजों ने हार्ड डिस्क से ही छेड़छाड़ कर दी। मामला पकड़ में आने के बाद भी जिम्मेदारों पर कड़ी कार्रवाई न होने से दाखिले के ठेकेदारों के हौसले बुलंद रहते हैं।
प्रदेश में पहले विभिन्न कॉलेजों के माध्यम से सीधे बीएएमएस, बीएचएमएस और बीयूएमएस में दाखिला होता था। बीएएमएस के लिए संस्कृत और बीयूएमएस के लिए उर्दू विषय अनिवार्य था। अब दोनों की अनिवार्यता खत्म कर दी गई है। वर्ष 1978 में सीपीएमटी के जरिए आयुष कॉलेजों में दाखिला होने लगा। इसके बाद भी आयुर्वेदिक एवं यूनानी कॉलेजों के दाखिलों पर सवाल उठता रहा।
स्थित यह रही कि अयोध्या और गाजीपुर स्थित कॉलेज के कई छात्रों को चार साल की पढ़ाई के बाद उनका दाखिला अवैध घोषित किया गया। लेकिन जिम्मेदार विभागीय अफसरों और प्रधानाचार्यों पर कार्रवाई नहीं की गई। वर्ष 2016 और 2017 में आयुष कॉलेजों के लिए अलग से परीक्षा कराई गई। प्रयागराज सहित कई जगह दाखिले में फर्जी छात्र पकड़े गए। फिर वर्ष 2019 में नीट में आयुष को शामिल किया गया। तब से नीट के जरिए दाखिला हो रहा है। उम्मीद थी कि नीट में ऑनलाइन काउंसिलिंग प्रणाली से में दाखिला ठेकेदारों की घुसपैठ नहीं होगी, लेकिन नीट 2021 के खुलासे ने साबित कर दिया कि यहां भी उनका दखल है।

# 2000 के बाद तेजी से बढ़े निजी कॉलेज

दाखिला ठेकेदारों की सक्रियता से आयुर्वेदिक, यूनानी और होम्योपैथिक कॉलेज डॉक्टर बनने के आसान साधन बन गए। पहले प्रदेश में सिर्फ लखनऊ में आयुर्वेदिक कॉलेज था। अन्य निजी कॉलेज थे, जो दाखिला और डिग्री तक सीमित थे। लेकिन वर्ष 1980 के आसपास आयुर्वेदिक, होम्योपैथिक कॉलेजों की शिक्षा व्यवस्था को लेकर आंदोलन शुरू हुआ। 1981 से 84 के बीच मुजफ्फरनगर, हंडिया (प्रयागराज) और पीलीभीत में चल रहे निजी आयुर्वेदिक कॉलेजों का प्रांतीयकरण हुआ।
इसके बाद इन कॉलेजों के प्रधानाचार्य से लेकर सभी स्टॉफ को सरकारी मान लिया गया और नए कॉलेज खोलने पर रोक लगा दी गई। लेकिन वर्ष 2000 के बाद निजी कॉलेज खोलने की होड़ लग गई। वर्ष 2012 के बाद कॉलेज खोलने के कई प्रावधानों को आसान कर दिया। फिर तो प्रदेश में निजी आयुष कॉलेजों की संख्या 80 से हो गई। इसमें आयुर्वेद के 58, होम्योपैथ के चार और यूनानी के 18 कॉलेज हैं। इन कॉलेजों में कुल 5880 सीटें हैं। स्थिति यह है कि आयुर्वेद विभाग से जुड़ा हर अधिकारी निजी कॉलेज खोलने के लिए आतुर रहता है।

 # ऐसे चलता है खेल…

सूत्र बताते हैं कि निजी कॉलेज अपने तरीके से छात्रों को दाखिले के लिए सूचीबद्ध करते हैं। इसके लिए एडवांस रकम जमा कराई जाती है। जोड़तोड़ से जिन छात्रों का दाखिला हो जाता है, उन्हें पढ़ने की इजाजत दे दी जाती है। अन्य को अगले साल दाखिला दिलाने का भरोसा दिया जाता है। यह कार्य साल दर साल चलता रहता है। दाखिले के पैटर्न भले बदल जाएं, लेकिन कॉलेज संचालक और काउंसिलिंग से जुड़े लोगों की मिलीभगत से यह खेल निरंतर चल रहा है

# पिछले दो साल की काउंसिलिंग पर भी संदेह 

नीट 2021 के खुलासे के बाद पिछले दो वर्ष हुई काउंसिलिंग भी संदेह के घेरे में हैं। क्योंकि इसी एजेंसी ने ही काउंसिलिंग कराई थी। ऐसे में इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि आयुष कॉलेजों में द्वितीय और तृतीय वर्ष में पढ़ाई करने वाले छात्रों का भी दाखिला हेराफेरी से न हुआ हो। इनकी जांच कराने की मांग उठने लगी है। 

# एसटीएफ ने निदेशालय से मांगे दस्तावेज 

मामले की जांच कर रही एसटीएफ ने आयुष निदेशालय से दाखिलों में हुए हेराफेरी से जुड़े दस्तावेज मांगे हैं। इस पूरे खेल का मुख्य मास्टरमाइंड कौन है, डाटा फीडिंग करने वाली एजेंसी और वेंडर कंपनियों की दाखिले में क्या भूमिका रही, किस तरीके से कम मेरिट वाले को प्रवेश दिलाया गया, इस खेल के मुख्य किरदार कौन-कौन लोग थे और यह खेल कब से चल रहा था, इन सबकी एसटीएफ बारीकी से पड़ताल में लग गई है। जांच एजेंसी ने इन बिंदुओं पर और प्रकरण से जुड़े लोगों का ब्योरा जुटाना शुरू कर दिया है। जांच के लिए एक अलग से टीम गठित कर दी गई है। सूत्रों का कहना है कि जल्द ही कुछ बड़ी कार्रवाई भी हो सकती है। 

# आयुष दाखिले में उच्च एजेंसी से जांच की तैयारी

आयुष कॉलेजों के दाखिलों में हुई हेराफेरी की जांच उच्च स्तरीय एजेंसी से कराने की तैयारी शुरू हो गई है। संदिग्ध दाखिलों में अफसरों, नेताओं और डॉक्टरों के बच्चाें और रिश्तेदारों के नाम भी सामने आ रहे हैं। ऐसे रसूखदार लोग अब प्रकरण को मैनेज करने की कोशिश में जुट गए हैं। लेकिन शासन ने द्विस्तरीय जांच के जरिए पूरे दाखिला रैकेट को खत्म करने की ठान ली है। 
प्रदेश के आयुष कॉलेजों में 2021 में हुए दाखिलों में अब तक 891 मामले संदिग्ध पाए गए हैं। इनमें 22 ऐसे हैं, जो नीट में शामिल ही नहीं हुए। मामले में डाटा रखने वाली कंपनी अपट्रॉन, उसके वेंडर वी2 साल्यूशन प्रा. लि. और वेंडर एजेंसी के प्रतिनिधि कुलदीप सिंह व अन्य के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज हुई है। एसटीएफ ने शनिवार से ही जांच शुरू कर दी है। यह सख्ती देख संदिग्ध छात्रों के परिजन आयुष के साथ ही सेहत से जुड़े अन्य विभागों में कार्यरत वरिष्ठ अधिकारियों और सत्ता में बैठे लोगों की परिक्रमा में लग गए हैं। लेकिन कोई मुंह खोलने को तैयार नहीं है। सूत्रों का कहना है कि देर-सबेर जांच की आंच गलत करने वालों तक पहुंचनी तय है। शासन प्रकरण में जीरो टॉलरेंस की नीति अपना रहा है।  

# हार्ड डिस्क में छेड़छाड़ की होगी पड़ताल

विभाग से जुड़े एक उच्चाधिकारी ने बताया कि द्विस्तीय जांच से इस हेराफोरी का हर तथ्य सामने आ जाएंगे। एसटीएफ के साथ साइबर सेल इस बात की पड़ताल करेगी कि गलत तरीके से दाखिले के लिए हार्ड डिस्क में किस स्तर पर छेड़छाड़ हुई? क्योंकि यह चिकित्सा शिक्षा एंव प्रशिक्षण महानिदेशालय कार्यालय से आयुर्वेद निदेशालय तक पहुंची है। काउंसिलिंग के बाद हार्ड डिस्क के करप्ट होने की वजह तलाशी जाएगी। जो बदलाव हुए हैं, वह किस स्तर पर और कब हुए हैं। यह भी देखा जाएगा कि संदिग्ध दाखिलों की संख्या 891 के अधिक संख्या तो नहीं है। 

# 2021 से पहले की भी जांच

2021 के साथ इससे पहले हुए दाखिलों की भी जांच कर पता लगाया जाएगा कि कहीं पहले से तो गड़बड़ियां नहीं चल रही थीं। आयुर्वेद विभाग की जांच में सीधे-सीधे काउंसिलिंग एजेंसी को जिम्मेदार ठहराया गया है। लेकिन उच्च स्तरीय जांच में यह भी देखा जाएगा कि एजेंसी से काम कराने के पीछे विभागीय लोगों का हाथ तो नहीं था। एक तरह से दो जांच एजेंसियां एक ही लक्ष्य को टारगेट करेंगी। ताकि दोषियों को जल्द से जल्द पकड़ा जा सके। 

# जो भी दोषी होगा छोड़ा नहीं जाएगा 

इस सन्दर्भ में आयुष एवं एफएसडीए मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ. दयाशंकर मिश्र दयालु ने कहा कि एसटीएफ ने जांच शुरू कर दी है। प्रकरण की गंभीरता को देखते हुए उच्च स्तरीय एजेंसी से भी जांच कराने पर बात चल रही है। कोशिश है कि इस प्रकरण में दूध का दूध और पानी का पानी अलग कर दिया जाए। जो भी दोषी हो, उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए ताकि भविष्य में ऐसा प्रकरण सामने न आए। अफसर हो या नेता अथवा अन्य कोई, जो भी दोषी होगा उसे छोड़ा नहीं जाएगा।

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