पशु डॉक्टर हैं न… भगवान ही मालिक हैं!
# एक पशु चिकित्सक की आत्मकथा जैसी सच्चाई
एखलाक खान
तहलका 24×7 विशेष
कोरोना महामारी का वो दौर, जब सांसें कीमती थीं, ऑक्सीजन दुर्लभ थी और इलाज दुर्लभतम।शहर की गलियों में सन्नाटा था, अस्पतालों में अफरा तफरी और मोबाइल पर घंटी बजती ही नहीं थी।क्योंकि “डिग्रीधारी” डॉक्टर अब फोन उठाना भी बंद कर चुके थे। उसी समय सेंट थॉमस रोड पर एक परिवार तरह से संक्रमित हुआ। अस्पतालों ने हाथ खड़े कर दिए, एंबुलेंस नहीं मिली और इलाज की आस टूटती जा रही थी।

तभी मैं डा. आलोक सिंह पालीवालएक पशु चिकित्सक उनके दरवाजे पर पहुंचा। न मेरे पास एप्रन था, न PPE किट, न ही मेडिकल किट से भरी कोई गाड़ी। बस था तो सेवा का संकल्प, कुछ चिकित्सकीय अनुभव और बहुत सारी इंसानियत।बहुतों को लगता है कि वेटनरी साइंस का डॉक्टर सिर्फ जानवरों का इलाज करता है, पर वे भूल जाते हैं कि फार्माकोलॉजी, एनाटॉमी, पैथोलॉजी, माइक्रोबायोलॉजी और इम्यूनोलॉजी ये सब हम भी पढ़ते हैं।

फर्क सिर्फ इतना है कि हमारे मरीज बोल नहीं सकते। शायद इसीलिए हमारी समझ और संवेदनशीलता कुछ अधिक विकसित होती है।मैंने उस परिवार को होम आइसोलेट कराया, इलाज की व्यवस्था की, दवाओं की सूची बनाकर समय से सेवन कराया और हर दिन उनकी स्थिति की मॉनिटरिंग की। और हाँ, ईश्वर की कृपा से एक भी जान नहीं गई। लेकिन समाज का एक और चेहरा देखने को मिला। गली के एक जाने-माने कॉलेज में पढ़ाने वाले मास्टर साहब बोले “अब पशु डॉक्टर देख रहे हैं, तो भगवान ही मालिक हैं!

यह वाक्य केवल एक तंज नहीं था, यह उस सोच का प्रतीक था जो डिग्री को सेवा से ऊपर मानती है। मास्टर साहब की तरह कई लोग यह मानते हैं कि डॉक्टर का मतलब केवल MBBS होता है, जैसे जीवन बचाने का अधिकार किसी सर्टिफिकेट से मिलता हो। वास्तविकता यह है कि जब देश की स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा रही थी, तब हमने और हम जैसे पशु चिकित्सकों ने जमीनी स्तर पर काम किया। हमने लोगों को ऑक्सीजन दिलवाई, होम आइसोलेशन गाइडलाइन समझाई और सबसे जरूरी बात कि हमने कभी फोन काटा नहीं, कभी दरवाजा बंद नहीं किया।

डॉक्टर सिर्फ वो नहीं होता जो स्टेथोस्कोप गले में लटकाकर बड़ी-बड़ी इमारतों में बैठता है। डॉक्टर वो भी होता है जो जान बचाने के लिए बिना किसी भय के आगे बढ़ता है, चाहे मरीज इंसान हो या जानवर। आज जब कभी उस परिवार के सदस्य मिलते हैं, तो कृतज्ञता से कहते हैं “डॉक्टर साहब आप न होते तो शायद हम न होते।” उस एक वाक्य में जो गरिमा है, वह किसी भी डिग्री या उपाधि से कहीं ऊपर है। यह गुस्से में लिखा व्यंग्य नहीं है। यह एक पशु चिकित्सक की ओर से समाज को दिया गया एक विनम्र आइना है। सोचिए, समझिए और फिर बोलिए। किसी की योग्यता सिर्फ उसकी डिग्री से मत तौलिए। क्योंकि जब संकट आता है, तो डिग्री नहीं, नीयत और सेवा-भाव ही सच्चा प्रमाण-पत्र होते हैं।