मां-बेटे ने बेच दी वायुसेना की रनवे, 28 साल बाद केस दर्ज
फिरोजपुर।
तहलका 24×7
भारत में फर्जी दस्तावेजों के जरिए जमीन हड़पने के कई मामले सामने आते रहे हैं, लेकिन पंजाब के फिरोजपुर से एक ऐसा मामला सामने आया है, जिसने सबको चौंका दिया। यहां मां-बेटे की जोड़ी ने कथित तौर पर भारतीय वायुसेना की रनवे वाली जमीन को ही बेच दिया। 28 साल बाद पुलिस ने दोनों आरोपियों के खिलाफ केस दर्ज कर लिया है।यह जमीन फिरोजपुर के गांव फत्तू वाला में है।

ब्रिटिश शासनकाल में द्वितीय विश्व युद्ध के समय 1945 में एडवांस लैंडिंग ग्राउंड (ALG) तैयार किया गया था। यह जमीन तब युद्धकालीन जरूरतों के लिए खरीदी गई थी। उसके बाद भारतीय वायुसेना के अधीन आ गयी। लेकिन, इस बीच ऊषा अंसल और उनके बेटे नवीनचंद अंसल जो मूल रूप से गांव डुमनी वाला के रहने वाले हैं, उन्होंने फर्जी दस्तावेज तैयार कर जमीन बेच डाली। इस घोटाले का खुलासा रिटायर्ड कानूनगो निशान सिंह ने किया। उन्होंने इस धोखाधड़ी की शिकायत प्रशासन से की।

मामले की जांच पंजाब विजिलेंस ब्यूरो की इंस्पेक्टर जगनदीप कौर को सौंपी गई, जिन्होंने अपनी रिपोर्ट एसएसपी कार्यालय को भेजी। इसके आधार पर कार्रवाई की गई।इस मामले में 28 जून को कुलगढ़ी थाने में FIR दर्ज की गई। पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ संबंधित धाराओं में मामला दर्ज किया। एसपीडी मंजीत सिंह ने बताया कि यह कार्रवाई रिटायर्ड कानूनगो निशान सिंह की शिकायत के आधार पर की गई है।

इस शिकायत की जांच इंस्पेक्टर जगनदीप कौर (विजिलेंस ब्यूरो) ने की और रिपोर्ट एसएसपी कार्यालय को सौंपी, जिसके आधार पर एफआईआर दर्ज की गई।जांच में पता चला कि आरोपियों ने कुछ निचले स्तर के राजस्व अधिकारियों के साथ मिलीभगत करके एयरफोर्स की जमीन निजी व्यक्तियों को बेच दी।मामला इतना संवेदनशील था कि पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट ने इसकी जांच की जिम्मेदारी विजिलेंस ब्यूरो के चीफ डायरेक्टर को सौंपी। 20 जून 2025 को रिपोर्ट दाखिल की गई, जिसके बाद एफआईआर दर्ज हुई। जांच में पता चला कि यह जमीन वायुसेना की है।

1945 में इस जमीन को ब्रिटिश प्रशासन ने युद्ध के लिए खरीदा था। तब से यह भारतीय वायुसेना के नियंत्रण में है। ऊषा और नवीन ने धोखाधड़ी करके इस जमीन को हासिल किया और बेच दिया। रेवेन्यू डिपार्टमेंट के रिटायर्ड अधिकारी निशान सिंह ने शिकायत दर्ज कराई थी। कई सालों तक इस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। 2021 में हलवारा एयरफोर्स स्टेशन ने फिरोजपुर के डिप्टी कमिश्नर से जांच की मांग की। जिसके बाद भी कोई हल नहीं निकला। इसके बाद निशान सिंह ने हाईकोर्ट में अपील की।

हाईकोर्ट में उनके वकील ने बताया कि जमीन के असली मालिक मदन मोहन लाल की 1991 में मौत हो गई थी। 1997 में बिक्री डील फाइनल हुई थी। जिसमें मुख्तियार सिंह, जागीर सिंह, सुरजीत कौर, मंजीत कौर, दारा सिंह, रमेश कांत और राकेश कांत का नाम शामिल था। इसमें सबसे खास बात यह रही कि सेना ने कभी भी जमीन इनके नाम नहीं की। राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा मानते हुए हाईकोर्ट ने फिरोजपुर के डिप्टी कमिश्नर को फटकार भी लगाई। जांच पूरी करने के लिए 4 हफ्ते का समय दिया।

जांच में हो रही देरी को लेकर जब शिकायतकर्ता निशान सिंह ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया तो पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने 21 दिसंबर 2023 को फिरोजपुर के डीसी को 6 महीने के भीतर जांच पूरी करने के आदेश दिए। जवाब में डीसी फिरोजपुर ने तीन पेज की रिपोर्ट देकर बताया कि 1958-59 के राजस्व रिकॉर्ड के अनुसार जमीन अभी भी भारतीय सेना के कब्जे में है। लेकिन निशान सिंह इस रिपोर्ट से संतुष्ट नहीं हुए और उन्होंने एक और याचिका दायर कर आरोप लगाया कि कई महत्वपूर्ण तथ्यों को जानबूझकर छिपाया गया। कुछ अधिकारियों की मिलीभगत से 2001 में जमीन निजी व्यक्तियों को हस्तांतरित कर दी गई।

मई 2025 में जिला प्रशासन द्वारा जांच के बाद कथित तौर पर निजी व्यक्तियों को हस्तांतरित की गई जमीन का हिस्सा रक्षा मंत्रालय को वापस सौंप दिया गया।पूर्व कानूनगो निशांत सिंह की माने तो इस जगह का असली मालिक दिल्ली चला गया था। 1937-47 से पहले की बात है। जिसके बाद यहां के अफसरों ने फर्जी रकबा तैयार करके जमीन को बेच दिया। यह रकबा 1997 में बेचा गया, 1997 से लेकर आज तक पटवारी, कानूनगो, तहसीलदार, एसडीएम मामले को दबाते रहे। भारतीय वायुसेना की जमीन का मामला अब हाईकोर्ट में था, जिसके बाद यह सच्चाई सामने आई।