जौनपुर : भारत में लोकतंत्र या जातितंत्र यह एक बड़ा सवाल- प्रो अखिलेश्वर शुक्ला
जौनपुर।
विश्व प्रकाश श्रीवास्तव
तहलका 24×7
संविधान दिवस पर आयोजित विशेष कार्यक्रम में मुख्य अतिथि वक्ता के रूप में बोलते हुए राजा श्रीकृष्ण दत्त स्नातकोत्तर महाविद्यालय जौनपुर के पूर्व प्राचार्य/विभागाध्यक्ष राजनीति विज्ञान विभाग प्रोफेसर डॉ अखिलेश्वर शुक्ला ने कहा कि 26 नवम्बर 1949 को हस्ताक्षरित एवं 26 जनवरी 1950 को लागू भारतीय संविधान के कई महत्वपूर्ण उपबंधो की चर्चा की उन्होंने कहा कि इस “संविधान निर्माताओं के उद्देश्यों एवं बाबा साहब डॉ भीमराव अम्बेडकर के सपनों के संविधान का स्वरूप (उद्देश्य) काफी कुछ भटक सा गया है।
लगभग सवा दो सौ वर्ष से भी ज्यादा हो गया स्वतंत्रत संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान का निर्माण हो रहा था तो संविधान सभा में जार्ज वाशिंगटन ने अपना विचार व्यक्त करते हुए कहा था कि “दलीय राजनीति राष्ट्रीय विकास में बाधक है” वे राजनीतिक दल पर आधारित लोकतंत्र को विकास में बाधक मानते थे। लेकिन संविधान निर्माण के दौरान ही दो विचारधाराएं प्रकट हुई और स्वाभाविक रूप से दो राजनीतिक दल निर्मित हो गये, जो आज भी विचारधारा के आधार पर जीवित हैं। पूरे विश्व पर राज करने वाला ब्रिटेन भी अपने राष्ट्रीय विकास के काल में विचारधारा के आधार पर हीं द्विदलीय ब्यवस्था पर आधारित लोकतंत्र को मजबूती प्रदान किया। आज भी ब्रिटिश संविधान लिखित नहीं है। वहीं अमेरिकी संविधान में केवल सात (07) अनुच्छेद है। दोनों देशों में मजबूत लोकतंत्र, राष्ट्रीय विकास में सहायक सिद्ध हो रहे हैं।
वहीं भारतीय संविधान निर्माण के पूर्व भारत की सामान्य जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों द्वारा भारतीय संविधान का निर्माण किया गया। जिसे जनता द्वारा निर्मित संविधान का दावा किया गया। यह संविधान विश्व का सबसे बड़ा संविधान है। यह भी ध्यान देने वाली बात है कि “भारत के संविधान में सतर वर्षों में सौ से अधिक संबोधन हो चुके हैं। जबकि सबसे छोटा संविधान अमेरिका में सवा दो सौ से अधिक वर्षों में केवल सत्ताइस (27) ही संबोधन की आवश्यकता पड़ी है। जिसको देखा समझा जाये तो स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि भारतीय संविधान निर्माताओं के नीयत और राजनीतिक दलों की नियति में इतना फर्क है कि लोक कल्याणकारी, समाजवादी राज्य की कल्पना स्वप्न मात्र रह गया है।
राष्ट्रीय भावना/राष्ट्र निर्माण की बात तो सोचना दूर की बात है। प्रो. अखिलेश्वर शुक्ला ने कहा कि “जाति आधारित ब्यवस्था राजनीतिक दलों के स्वास्थ्य के अनुकूल है, जबकि राष्ट्रीय हित एवं विकास के सर्वथा प्रतिकूल है” ऐसे में जाति आधारित ब्यवस्था को समाप्त कर वर्ग आधारित ब्यवस्था जब तक लागू नहीं होगा तब तक ब्यक्तिगत महत्वाकांक्षा एवं राजनीतिक स्वार्थ फलता फूलता रहेगा। भारत से योग्यताएं विकसित राष्ट्रों की तरफ पलायन करता रहेगा और ग़रीबी-अमीरी की खांई बढ़ती जाएगी। शिक्षा ब्यवस्था पर शोध होता रहेगा और स्वास्थ्य की चिंता यथावत बनी रहेगी। आवश्यकता है तुष्टिकरण का रास्ता छोड़कर गंभीर चिंतन मनन एवं राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत सोच समझ विकसित करने की।
विशिष्ट अतिथि समाजसेवी पारूल सिंह ने युवा पीढ़ी को परिवार द्वारा संस्कारवान बनाएं जाने पर बल दिया। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्राचार्य डॉ शम्भु राम ने कहा कि कम्प्यूटर मोबाईल युग में शिक्षा ब्यवस्था की चुनौतियों को रेखांकित करते हुए आगाह किया कि यदि इन संसाधनों का सदुपयोग के बजाय दुरुपयोग किया गया तो परिणाम बहुत घातक होंगे। भारतीय संविधान में प्रदत्त “विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता” के धातक परिणामों से समय रहते सतर्क हो जाने का आग्रह किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ संतोष कुमार पाण्डेय तथा आभार व्यक्त डॉ श्याम सुंदर उपाध्याय ने किया। उपस्थित जनों में डॉ लाल साहब यादव, सुधाकर मौर्य, स्वयम यादव, आफताब, ओमप्रकाश अन्य सहित बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।