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Monday, May 6, 2024

“जीवित्पुत्रिका व्रत महात्म्य” पर तहलका 24×7 विशेषांक

“जीवित्पुत्रिका व्रत महात्म्य” पर तहलका 24×7 विशेषांक

स्पेशल डेस्क।
राजकुमार अश्क
तहलका 24×7
              सर्वप्रथम सभी माताओं को तहलका 24×7 परिवार की तरफ से जीवित्पुत्रिका व्रत की हार्दिक शुभकामनाएं.. सनातन धर्म से जुड़े तमाम तरह के व्रत त्योहारों का जिक्र हमारी धार्मिक पुस्तकों में पढ़ने को मिलता है जिनका अलग अलग महत्व भी वर्णित है। उसी प्रकार महिलाओं के लिए एक विशेष व्रत का जिक्र भी हमारी भारतीय संस्कृति में देखने को मिलता है जिसे जीवित्पुत्रिका या जीउतिया के नाम से भी जाना जाता है। यह आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि से प्रारंभ होता है, इसे महिलाएँ अपनी संतान की लम्बी आयु सुख समृद्धि के लिए रखती हैं।
वैसे तो इस व्रत से जुड़ी अनेक कथाएँ प्रचलित है मगर सबसे ज्यादा प्रचलित जीउतवाहन की कथा है जो कि गंधर्वों के राजा थे सभी सुख सुविधा से सम्पन्न राजा अपनी प्रजा का ध्यान पुत्र की भांति रखते थे मगर उनका मन हमेशा विचलित रहता था जिस कारण उन्होंने अपना पूरा राज्य अपने भाईयों के सुपुर्द कर खुद वानप्रस्थ का रास्ता चुन लिया और कुछ समय पश्चात् मलयवती नामक राजकन्या से विवाह कर अपने पिता की सेवा करते हुए अपना जीवन बिताने लगे।
वन भ्रमण करते समय एक दिन जीउतवाहन वन में काफी दूर तक निकल गए, जहाँ उन्हें नागों की माता विलाप करते हुए दिखी, कारण पूछने पर नाग माता ने बताया कि मैं नागवंशी कन्या हूँ गरूड़ से संधि के अनुसार आज मेरे इकलौते पुत्र शंखचूड को उनका आहार बनना है मेरा एक ही पुत्र है मैं किसके सहारे जीऊँगी, उन्होंने नाग माता को आश्वासन दिया कि आपके पुत्र को कुछ नहीं होगा मैं उसकी रक्षा करूगाँ, आज गरूड़ का भोजन मैं बनूंगा।
इतना कह कर जीउतवाहन उस निश्चित स्थान पर लाल कपड़े में लिपट कर खुद लेट गये, जहां पर रोज गरूड़ नागों को खाने के लिए आते थे। गरूड़ ने जीउतवाहन को अपना भोजन समझ कर भक्षण करने लगे मगर गरूड़ को कुछ शंका हुई कि जब मैं रोज भोजन करता था तो रोने और चीखने की आवाज़ आती थी मगर आज क्यों नहीं? अपनी शंका के समाधान के लिए जब उन्होंने वस्त्र हटा कर देखा तो जीउतवाहन पड़े हुए थे, तब गरूड़ ने उनका परिचय पूछा और ऐसा करने की वजह जानना चाहा।जीउतवाहन ने सारी हकीकत बया करतें हुए गरूड़ से नाग जाति को अभयदान देने की विनती की। जीउतवाहन के इस तरह परोपकार की भावना से गरूड़ बहुत प्रभावित हुए और नागों को जीवन दान दिया तभी से पुत्र की रक्षा के लिए जीउतवाहन की पूजा की प्रथा चली आ रही है।
एक दूसरी कथा महाभारत काल की भी बताई जाती है कि अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे शिशु को अश्वत्थामा ने अपने क्रोध बस मारने की कोशिश की थी जिसकी रक्षा भगवान श्रीकृष्ण ने अपने सभी पुण्य कर्मों को एकत्र करके की थी। ऐसा कहा जाता है कि जो स्त्रियाँ पूरे मनोयोग से इस व्रत का पारन करती है उनके पुत्र के जीवन में कभी भी कष्ट नहीं आता है यह व्रत अत्यंत ही फलदायी माना जाता है।

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