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Friday, April 26, 2024

जौनपुर : शाहगंज विधानसभा सीट पर सपा के तिलिस्म को तोड़ने में जुटा गठबंधन

जौनपुर : शाहगंज विधानसभा सीट पर सपा के तिलिस्म को तोड़ने में जुटा गठबंधन

# 26 वर्षों से अपने वजूद के लिए तरस रही बीजेपी, नहीं खिला कमल

# शाहगंज सीट पर अब तक किसी महिला का नहीं रहा प्रतिनिधित्व

जौनपुर।
अज़ीम सिद्दीकी
तहलका 24×7
                  उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में अंतिम चरण में जनपद जौनपुर का चुनाव होना सुनिश्चित है। इस जनपद में 9 विधानसभा सीट है। हर सीट पर लगभग सभी राजनीतिक पार्टियों ने अपना- अपना प्रत्याशी मैदान में उतारा है। जिसमें हम बात कर रहे हैं जिले की सबसे चर्चित सीट शाहगंज विधानसभा क्षेत्र की.. इस सीट पर समाजवादी पार्टी का 2002 से लगातार अब तक दबदबा कायम है। वर्तमान में समाजवादी पार्टी से शैलेंद्र यादव ललई चार बार से विधायक हैं और पांचवी बार सपा के सिम्बल पर ताल ठोंक रहे है। इस बार विधानसभा के चुनाव में समाजवादी पार्टी ने एक बार फिर से शैलेंद्र यादव ललई पर विश्वास जमाते हुए टिकट देकर मैदान में उतारा है। वहीं दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी और निषाद पार्टी से गठबंधन के उम्मीदवार रमेश सिंह मैदान में हैं।
इस सीट पर आमने- सामने की लड़ाई मानी जा रही है। जिसमें गठबंधन बनाम सपा की लड़ाई मानी जा रही है। प्रत्याशी अपनी-अपनी जीत का दावा कर रहे है। इस बार लड़ाई बड़ी दिलचस्प रहेगी। बहुजन समाज पार्टी से उम्मीदवार इंद्रदेव यादव वोटों की सेंधमारी करते हुए जीत की दावेदारी कर रहे है। वहीं कांग्रेस पार्टी ने परवेज़ आलम भुट्टो को चुनावी मैदान में उतार कर अपनी प्रतिष्ठा दांव पर लगा कर किस्मत आज़माइश कर रही है। प्रत्याशी अपने- अपने हिसाब से मतदाताओं को रिझाने में पूरी तरह से जुटे हुए हैं। ज्यों- ज्यों मतदान की तारीख करीब आ रही है त्यों- त्यों प्रत्याशियों की धड़कने तेज़ होने लगी है। जोड़- तोड़ की राजनीति चरम पर है। यह सीट यादव बाहुल्य मानी जाती है। ऐसे में समाजवादी पार्टी अपना किला बचाने का पूरा प्रयास कर रही है।
वहीं दूसरी तरफ गठबंधन प्रत्याशी रमेश सिंह मजबूत घेराबंदी के साथ समाजवादी पार्टी के अभेदय किले को भेदने की कोशिश में जुटे हुए है। शाहगंज विधानसभा सीट पर विधानसभा गठन के बाद से सन 1974 तक कांग्रेस का वर्चस्व रहा लेकिन 1977 में हुए चुनाव में जेएनपी से उम्मीदवार रहे छोटेलाल ने कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार लालता प्रसाद को पराजित कर कांग्रेस के इतिहास को बदलने में कामयाब रहे। इसके बाद सन 1980 में हुए चुनाव में कांग्रेस (आई) से उम्मीदवार रहे पहलवान रावत ने दीपचंद्र सोनकर (जेएनपी) को हराकर एक बार फिर कांग्रेस इस सीट पर कब्जा जमाया। लेकिन तब से लेकर अब तक इस सीट पर कांग्रेस कब्जा जमाने के लिए तरसती रही है। इस बार कांग्रेस ने पहली बार इस सीट पर अल्पसंख्यक कार्ड खेलते हुए अपना उम्मीदवार परवेज आलम भुट्टो को बनाकर अपनी खोई हुई ज़मीन तलाशने की कोशिश कर रही है।
सन 1991 में भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी राम प्रसाद रजक उर्फ नाथे ने बसपा प्रत्याशी रामदवर को हरा कर पहली जीत दिलाई थी। उसके बाद 1996 बीजेपी से बांकेलाल सोनकर इस सीट से विधायक रहे। तब से लेकर अब तक बीजेपी इस सीट पर जीत के लिए काफी मशक्कत कर रही है लेकिन कमल खिलाने में सफल नहीं हो पाई। वहीं इस सीट पर बहुजन समाज पार्टी ने 1993 में रामदवर को मैदान में उतारा था। जिसमें भाजपा उम्मीदवार मंजुलता को हराकर बीएसपी ने अपना पहला खाता खोला था। तब से लेकर दोबारा इस सीट बसपा को नसीब नहीं हो सकी जैसे हाथी रास्ता भटक गया हो।
इस बार बहुजन समाज पार्टी से इंद्रदेव यादव मैदान में हैं। अगर हम बात करें इस सीट की सन 2002 से लगातार सपा के कब्जे में होती चली जा रही है। इस सीट पर दो बार जगदीश सोनकर विधायक रह चुके हैं और दो बार शैलेंद्र यादव ललई भी। इस बार सपा ने पुनः टिकट देकर मैदान में उतारी है तो शैलेंद्र यादव ललई अपनी जीत की हैट्रिक लगाकर समाजवादी पार्टी को पांचवी बार जीत दिलाकर अपना राजनीतिक किला बचाने के साथ अपनी प्रतिष्ठा बचाने की कोशिश कर रहे हैं। अब सवाल यह है कि क्या सपा का किला बचा पाते हैं या अन्य प्रत्याशी द्वारा किला भेद दिया जाता है यह तो भविष्य के गर्भ में है।

# 2017 के चुनाव परिणाम पर एक नज़र

शाहगंज विधानसभा सीट 2017 के परिणाम पर अगर नजर डालें तो इस सीट से पिछली बार चुनाव में भाजपा और सुहेलदेव समाज पार्टी से गठबंधन प्रत्याशी राणा अजीत प्रताप सिंह मैदान में थे। वहीं समाजवादी पार्टी से शैलेंद्र यादव ललई थे और बहुजन समाज पार्टी से ओमप्रकाश सिंह मैदान में थे। जिसमें शैलेंद्र यादव ललई ने 67818 मत पाकर विजय हासिल कर समाजवादी पार्टी को चौथी बार जीत दिलाई थी। वही गठबंधन प्रत्याशी राणा अजीत सिंह 58656 मत पाकर हार का सामना करना पड़ा था। बसपा से ओमप्रकाश सिंह को 51176 वोट से ही संतोष करना पड़ा था।

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