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Wednesday, May 8, 2024

सेवइयों के बिना अधूरी है ईद-उल-फित्र की खुशी 

सेवइयों के बिना अधूरी है ईद-उल-फित्र की खुशी 

जौनपुर। 
हाजी जियाउद्दीन 
तहलका 24×7 
               ईद-उल-फितर की खुशियां बिना सेवईयों के अधूरी मानी जाती है। ईद के दिन जब घर के मर्द मस्जिद या ईदगाह में नमाज पढ़ने जाते हैं तो लड़कियां और महिलाएं अपने प्रिय रिश्तेदारों के घर पहुंचकर सेवइयों का लुत्फ उठाती हैं। मर्दो के घर लौटने से पहले वो भी अपने घर वापस लौट जाती हैं। सेवइयों के बिना ईद का त्योहार अधूरा है। आजकल, छोटी-बड़ी बाजारों में विभिन्न प्रकार की सेवइयां उपलब्ध हैं। लेकिन, कुछ दशक पहले जब संसाधन कम थे, तो महिलाएं सेवइयों को घर पर तैयार करती थीं।
पूरे गांव की  महिलाएं कुछ एक मशीनों से सेवइयां तैयार करती थीं। लोग ईद के अवसर पर बड़े चाव से घर में बनी सेवईयां पीते थे। समय के साथ शहरों में सेवईं बनाने का उद्योग स्थापित किया गया, जहां एक दिन में हजारों किलो सेवईं आसानी से तैयार हो जाती थी। इस प्रकार 80 के दशक तक महिलाओं द्वारा घर पर ही सेवईं बनाने का चलन आम था। सेवईं बनाने के लिए आटे और पानी की आवश्यकता होती है।सेवईं बनाने के लिए चार पाई को उल्टा करके उसके चारों पायों पर एक पतला कपड़ा बांध दिया जाता था।
आटे को गूंद लिया जाता था,  आटा जब आवश्यकतानुसार तैयार हो जाता था तो सेवईं बनाने वाली मशीन को सबसे पहले फ्रेम में फिट कर दिया जाता, उसके बाद कुछ महिलाएं मिलकर लोई तैयार कर के उसे मशीन में डालतीं फिर मशीन को चला कर लच्छा के रूप में सेवईं तैयार किया जाता। उसे धूप में सुखाया जाता था। घर के छोटे बच्चे भी बड़े उत्साह से मदद करते थे। जरूरत पड़ने पर घर के पुरुष भी मशीन का हैंडल घुमाते। किमामी सहित विभिन्न प्रकार की सेवइयां बाजार में उपलब्ध हैं।
बाजार मे उपलब्ध होने वाली सेवईयों में रोमाली, फैनी, पराठा सेवईं आसानी से उपलब्ध हैं। घरेलू सेवईं पकाने के लिए महिलाएं इसे एक बर्तन में डालकर उसमें देसी घी या डालडा घी डालकर लाल होने तक भूनती थीं, इसे छान लेती थीं ताकि अशुद्धियां खत्म हो जाएं। फिर आवश्यकतानुसार घी, लौंग, इलायची आदि डालकर एक बड़े बर्तन में रख चाशनी बनाती। बाद में इसे आंच से उतारकर ठंडा होने का इन्तेजार करती। फिर कुछ समय बाद महिलाएं इसमें पहले से मौजूद लाल भुनी हुई सेवइयों को डालकर अच्छे से हिलाती और स्वादिष्ट सेवईं तैयार कर घर आए मेहमानों को परोसी जाती थी।
वाराणसी के प्रीति फूड प्रोडक्ट्स के अमृत लाल ने बताया कि सेवईं बनाने का काम हमारे दादा ने  शुरू किया था। अब बाजार की जरूरत के हिसाब से एक दिन में 10 क्विंटल तक मोटी और छह कुंतल बारीक सेवई तैयार की जाती है। इन्हे सुखाने के लिए बांस और लोहे की बनी जाली का इस्तेमाल किया जाता है। बरसात के मौसम में सेवई को सुखाना काफी मुश्किल होता है। इसलिए बरसात के दिनों में उद्योग बंद रहता है। सेवईं के खरीददार यूपी के अलावा बिहार, बंगाल, महाराष्ट्र आदि प्रदेशों के विभिन्न जिलों से पहुंचते हैं। त्योहार में भारी खपत होती है इसलिए सेवईं तैयार करने का काम कई महीने पहले से शुरु होता है और भारी मात्रा में स्टाक किया जाता है।

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