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Friday, July 18, 2025

भारत-पाक युद्ध विराम: अमेरिका बड़बोलेपन से बैकफुट पर और चीन, तुर्किए बेनकाब! 

भारत-पाक युद्ध विराम: अमेरिका बड़बोलेपन से बैकफुट पर और चीन, तुर्किए बेनकाब! 

# भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विदेशी फरेब को पकड़कर देश की जनता को दिया जवाब, कहा- हमारी लड़ाई आतंकवाद से है, इसकी जद में आने वाला हर कोई दुश्मन माना जाएगा, भारतीय सेना के शौर्य का दुनिया में बजा डंका

कैलाश सिंह
राजनीतिक संपादक
लखनऊ/दिल्ली। 
तहलका 24×7
              कश्मीर घाटी के पहलगाम में विगत 22 अप्रैल को धर्म पूछकर जेहादी आतंकियों द्वारा की गई 26 निर्दोष हिन्दू पर्यटकों की हत्या के बाद भारतीय सेना द्वारा चलाये गए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ ने चीन और तुर्किये समेत कई विदेशी ताकतों के चेहरे का नकाब ही नहीं उतारा बल्कि उनके सुरक्षा उपकरणों के बाज़ार की ढोल बजा कर रख दिया।इतना ही नहीं, आतंक के खिलाफ इस युद्ध ने महज चार दिन में कई रिकॉर्ड बना दिये। इतिहास के जानकारों और रक्षा विशेषज्ञों की मानें तो आर्थिक रूप से विकसित हो रहे भारत ने कम समय यानी चार दिन में अपनी सैन्य ताकत का जो प्रदर्शन किया है वह 21वीं सदी की अकेली नज़ीर बन गई है।
भारत का हमला आतंकी ठिकानों पर था, न की पाकिस्तान पर, उसकी जद में आतंक को पोषित करने वाली पाकिस्तानी सेना भी आई, क्योंकि दोनों एक-दूसरे के पर्यायवाची बन चुके हैं।भारत ने नौ आतंकी ठिकानों को तबाह करने के बाद पाकिस्तान के 11 एयरबेस सिस्टम को तब ध्वस्त किया, जब उसने हमारे दो दर्जन शहरों को निशाना मिसाइल और ड्रोन से बनाया तो इन उपकरणों को हमारी सुरक्षा प्रणाली से हवा में ही नस्ट कर दिया।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का 10 मई को सबसे पहले भारत-पाक  के बीच युद्ध विराम वाले ट्वीट यानी बयान ने नरेंद्र मोदी को देश-दुनिया में क्षणिक कमजोर जरूर कर दिया था लेकिन ट्रम्प के अति उत्साहित बयान कि ‘मैं एक हजार साल से जारी कश्मीर विवाद को भी सुलझा दूंगा।’ यह हर कोई जानता है कि इस विवाद की कुल उम्र ही अधिकतम 78 साल होने को है। बस यहीं से फिर मोदी का ग्राफ ऊंचाई नापने लगा। रहा सवाल युद्ध विराम का तो अमेरिकी इशारे पर पाकिस्तान के डीजीएमओ ने भारतीय डीजीएमओ से मौखिक वार्ता पर हुआ। अभी तक इसमें कोई लिखित समझौता नहीं हुआ है। पाकिस्तान के झूठे दावे की कलई उतारने के लिए मोदी को आदमपुर एयरबेस पर जाना पड़ा।
वहां पहुंचकर उन्होंने सेना को संबोधन के साथ देश की जनता को बताया और दर्शाया कि यह वही एयरबेस है जिसे पाकिस्तान अपनी ओर के हमले में नस्ट करने का दावा कर रहा है।कूटनीतिक विश्लेषकों की मानें तो चीन समेत तमाम विदेशी शक्तियां चाहती थीं कि भारत युद्ध में फंसेगा तो उसकी आर्थिक शक्ति का क्षरण होगा और विकास रुकेगा और वह विकासशील देशों की श्रेणी में ही रह जाएगा। रहा सवाल अमेरिका का तो वाइडन प्रशासन की तरह ट्रम्प प्रशासन भी पाकिस्तान को शह देने के साथ भारत का दोस्त बनने का नाटक ही करता रहा है।
रूस-युक्रेन युद्ध के मामले में भारत की जो भूमिका रही उससे बढ़कर पाकिस्तान से परोक्ष युद्ध में रूस भारत के साथ संजीदा रहा है, उसके और फ्रांस के दिये गए एयर डिफेंस सिस्टम भारतीय सुरक्षा प्रणाली के साथ शानदार प्रदर्शन ने उनके भी शेयर बाज़ार का रुख आसमान की तरफ कर दिया है।इस मामले में शिक्षाविद, वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक डॉ. अनिल कुमार उपाध्याय ने ‘तहलका 24×7’ से हुई बातचीत में साफतौर पर कहा कि अमेरिका किसी का सगा नहीं हो सकता है।
वह केवल अपने हित को सर्वोपरि रखता है। यही प्रक्रिया चीन अपनाता है, उसकी विस्तारवादी नीति का ही परिणाम है कि इन दिनों अमेरिका की कठपुतली बांग्लादेश के अंतरिम सरकार का मुखिया मो. युनुस चीन की गोद में खेलने लगा है। हमारे प्रधानमंत्री मोदी न जाने किन कारणों से से डोनाल्ड ट्रम्प से दोस्ती का राग अलापते रहे हैं। दशकों से यदि भारत सच्चा दोस्त किसी को माना जाए तो वह रूस है।डॉ. उपाध्याय का मानना है कि ऑपरेशन सिंदूर के जरिए भारत ने जहां अपने अत्याधुनिक उपकरणों व रक्षा प्रणाली से सेना का जो बेमिसाल प्रदर्शन किया और अपनी ताकत का लोहा मानवया उसी का नतीजा था अमेरिका का भारत-पाक के बीच में आना, क्योंकि पाकिस्तान भारत से बचाने की गुहार लगाते हुए उसके पास पहुंचा था।
पाक के पास अधिकतम हथियार एयर डिफेंस सिस्टम और ड्रोन, मिसाइलें चीन और तुर्किये की थीं जो मौके पर फुस्स पटाखा साबित हुईं, इससे चीन और तुर्किये के हथियार निर्यात का मार्केट खराब हो गया है। भारत का वॉटर स्ट्राइक, बिजनेस स्ट्राइक पाकिस्तान के साथ तुर्किये को निरंतर भारी पड़ता जाएगा।ऑपरेशन सिंदूर जारी रहने से आतंकियों के साथ पाक सेना के भी होश उड़े हुए हैं। अभी तक जो दुनिया में आर्थिक महाशक्तियों का समीकरण था उसके बदलने के आसार नजर आने लगे हैं। अब भारत के साथ रूस, इजराइल के अलावा एशिया के कई देश जुड़ सकते हैं जो चौथी आर्थिक महाशक्ति को जन्म देंगे।

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