यूपी में फर्जी पत्रकारों, कथित चिकित्सकों व नौकरशाहों के गठजोड़ में लुट रही है पब्लिक
# मीडिया का बदलता स्वरूप
# प्रिंट और टीवी पर जब सोशल मीडिया भारी पड़ा तब डिजिटल मीडिया का हुआ जन्म, बड़े अखबारों और चैनलों ने भी इसमें कदम रखा, घटते रीडर, दर्शकों को देश-विदेश व गांवों की ताजी व त्वरित खबरों से डिजिटल मीडिया ने अपनी तरफ खींचा। देश का पहला डिजिटल मीडिया संस्थान ‘भडास 4 मीडिया’ 17 साल पूर्व लांच हुआ और पीड़ित पत्रकारों के पक्ष में इसके निशाने पर बड़े मीडिया समूह रहे हैं, तमाम दबावों के बाबजूद आज भी नहीं डिगते हैं इसके सम्पादक यशवंत सिंह।
कैलाश सिंह
राजनीतिक संपादक
जौनपुर/ लखनऊ।
तहलका 24×7
एक दशक पूर्व देश में संचार प्रणाली जब हाईटेक हुई तो सोशल मीडिया, प्रिंट और टीवी पर भारी पड़ने लगा।जिसके हाथ मोबाइल आया और व्हाट्सएप एवं यूट्यूब चलाना जान गया तो फिर वह खुद को पत्रकार मान बैठा। यहीं से फर्जी पत्रकारों की भरमार हो गई। बड़े चैनलों सरीखे आईडी वाले चोंगे पोर्टल वाले भी बनवाकर ब्लॉक, थानों से लेकर जिला मुख्यालयों तक ब्लैकमेलिंग के धंधे में उतर गए। ये तो हुए टीवी चैनलों के नकलची, इसी तर्ज पर किन्हीं छोटे-बड़े अखबारों में पैसे देकर आईडी कार्ड हासिल करने वाले फर्जी पत्रकारों की फ़ौज भी मैदान में उतर गई।

इन्हें न लिखने आता है और न ही इनको प्रेस अधिनियम, मानक से कोई लेना-देना है।जब यह दोनों जमात आपस में मिली तो फर्जी और ब्लैकमेलिंग करने वाले पत्रकारों की भीड़ टिड्डे की तरह घूसखोर नौकरशाहों और कथित चिकित्सकों पर टूट पड़ी। लेकिन नौकरशाह और चिकित्सक भी कमजोर नहीं पड़े, बल्कि ऐसे कथित पत्रकारों को अपना दलाल बना लिया, इसके बाद तो जैसे पब्लिक की शामत आ गई।
इस रिपोर्ट में जौनपुर की कुछ घटनाओं के सांकेतिक प्रमाण भी आगे मिलेंगे। कमोबेश यही हालत उत्तर प्रदेश के सभी जिलों में देखने-सुनने को मिलता है।

दरअसल हम जिक्र कर रहे हैं देश के पहले डिजिटल मीडिया संस्थान ‘भडास 4 मीडिया’ का।इसकी स्थापना पोर्टल के रूप में वरिष्ठ पत्रकार यशवंत सिंह ने मई 2008 में की, यानी आज से 17 साल पूर्व। श्री सिंह का उद्देश्य था उन मेट्रो सिटी से लेकर ग्रामीण पत्रकारों की पीड़ा को शासन, प्रशासन और आमजन के सामने लाना, ताकि शोषण करने वाले बड़े मीडिया समूहों को शर्म का बाना पहनना पड़े और पीड़ितों को न्याय मिले।

इस अभियान में यशवंत सिंह को पथरीली राहों से भी गुजरना पड़ा, लेकिन वह डिगे नहीं, इन्हें आज भी अपना डिजिटल प्लेटफार्म चलाने को आमजन का आर्थिक सहयोग लेना पड़ता है, जबकि कथित गोदी मीडिया वाले करोड़ों में खेल रहे हैं। इधर सोशल मीडिया का दबाव बढ़ने से बड़े अखबारों और चैनलों में रीडर और दर्शकों का टोटा पड़ा तो वह भी प्रायोजित और नकली तरीके से रीडर और दर्शक जुटाने लगे, जब इससे भी बात नहीं बनी तो वह भी सोशल और डिजिटल के मैदान में कूद पड़े।

अब चिकित्सकों और झोलाछाप की मदद में उतरी दवा कम्पनियों के ‘काकस’ को सांझिये, डोनेशन के बल पर एमबीबीएस, एमएस करके अपने पिता की विरासत संभालने वाले या खुद लोन लेकर अस्पताल रुपी दुकान खोलने वाले चिकित्सकों के यहां खून से लेकर हर जांच व खुद की एमआरपी वाली दवा बिकती है। ये तमाम कथित डॉक्टर हर जिले में गांव से लेकर शहर तक नेटवर्क बना लेते हैं, इनको जब परदेश की धरती पर सम्मानित किया जाता है तो उन खबरों को ‘पेड’ दलाल सोशल मीडिया पर उछालते हैं, इसे देखकर आमजन को अचम्भा होता है कि कितनी जल्दी कौन सा शोध इसने कर लिया कि विदेश में सम्मानित हो गया।

जबकि असल में कथित मेडिकल कम्पनियों के कर्मचारी अपनी दवा बेचने के लिए इन डॉक्टरों को विदेशी टूर के साथ सम्मानित करने को किसी एनजीओ से सांठगांठ करके पुरस्कृत कराती हैं। जब वे डॉक्टर घर लौटते हैं तब फर्जी व दलाल पत्रकारों का रोल शुरू होता है। यही ब्लैकमेलिंग करने वाले कहीं से आईडी खरीदकर पत्रकार का तमगा लेकर धौंस जमाते हैं। इसी तर्ज पर डॉक्टर भी फर्जी डिग्री खरीदकर सैकड़ों मरीजों की जान से हर दिन कैरम खेलते हैं। उपर्युक्त कहानी का हर किरदार जौनपुर में मौजूद है।

इसी तरह एक ऐसा फर्जी मान्यता पत्रकार इस जिले में है जो बहुधन्धी है, प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक है, लेकिन बीएसए की मेहरबानी से वह स्कूल नहीं जाता है। वह फर्जी पत्रकार होर्डिंग, बैनर, फ्लैक्स के साथ पुरोहित गैंग भी संचालित करता है, यह गैंग पूजापाठ व मीडिया के काम के साथ मसाज पार्लर भी चलाता है। दूसरी तरफ जौनपुर में पहला डिजिटल मीडिया लाने वाले राजेश श्रीवास्तव ने जुलाई 2013 में ‘सिराज- ए- हिंद डाट काम’ नाम से पोर्टल लांच किया।

वह टीवी के पत्रकार रहे हैं, इसलिए खबरों में मानक का ध्यान रखते हैं, लेकिन डिजिटल या सोशल की दुनिया में कदम रखने वालों की जमात में ब्लैकमेलिंग करने की बाढ़ आ गई है। ऐसे चिकित्सकों और कथित पत्रकारों पर अंकुश कौन लगाए? जब छोटे से लेकर बड़े नौकरशाह भी इसी दलदल के हिस्सेदार हैं। बीते एक हफ़्ते से जौनपुर में दो कथित पत्रकार आपस में भिड़े हैं। एक ने महिला चिकित्सक से नकली युवती के गर्भपात के बहाने कथित ब्लैकमेलिंग शुरू की तो दूसरा कथित पत्रकार महिला चिकित्सक के पक्ष में खड़ा हो गया, बस इनके बीच सोशल मीडिया में खबरों की बौछार और वाक युद्ध शुरू हो गया, दोनों एक- दूजे के कपड़े उतार रहे हैं और लड़ाई कोर्ट की दहलीज में कदम रखने को उतावली दिख रही है।