कोर्ट में पेश न होना अपने आप में एक अपराध : सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली।
तहलका 24×7
सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि उद्घोषणा के जवाब में गैर हाजिर होना एक स्वतंत्र अपराध है और यह तब भी जारी रह सकता है, जब धारा 82 सीआरपीसी के तहत उद्घोषणा समाप्त हो जाती है। न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार और संजय करोल की पीठ ने कानूनी सवालों की जांच की, जिसमें यह भी शामिल था कि क्या सीआरपीसी के प्रावधानों के तहत किसी आरोपी की उद्घोषित अपराधी की स्थिति तब भी बनी रह सकती है, जब ऐसा आरोपी उसी अपराध के सिलसिले में मुकदमे के दौरान बरी हो जाता है।
![](https://tahalka24x7.com/wp-content/uploads/2024/04/IMG-20240414-WA0002.jpg)
पीठ ने यह भी जांच की कि क्या सीआरपीसी की धारा 82 के तहत उद्घोषणा का अस्तित्व है? अधिकारियों के लिए ऐसे अभियुक्त के खिलाफ कार्यवाही करना आवश्यक है जिसके खिलाफ पूर्ववर्ती आईपीसी की धारा 174ए के तहत ऐसी उद्घोषणा जारी की गई हो। पूर्ववर्ती सीआरपीसी की धारा 82 किसी व्यक्ति के फरार होने की उद्घोषणा से संबंधित है, और पूर्ववर्ती आईपीसी की धारा 174ए सीआरपीसी की धारा 82 के तहत उद्घोषणा के जवाब में गैर-हाजिर होने से संबंधित है। पीठ ने कहा कि क्या होगा यदि धारा 82 सीआरपीसी के तहत स्थिति को रद्द कर दिया जाता है?
![](https://tahalka24x7.com/wp-content/uploads/2021/05/IMG_000000_000000-1.jpg)
यानी, ऐसे उद्घोषणा के अधीन व्यक्ति को बाद के घटनाक्रमों के तहत, अब अदालत के समक्ष पेश होने की आवश्यकता नहीं है, तो क्या अभियोजन पक्ष अभी भी ऐसे व्यक्ति के खिलाफ कार्यवाही कर सकता है? क्योंकि वह उस समय के दौरान अदालत के समक्ष पेश नहीं हुआ जब प्रक्रिया प्रभावी थी?2 जनवरी को दिए गए फैसले में पीठ ने कहा कि जवाब सकारात्मक है। पीठ ने कहा कि धारा 174ए, आईपीसी की धारा कहती है कि जो कोई भी उद्घोषणा द्वारा अपेक्षित निर्दिष्ट स्थान और निर्दिष्ट समय पर उपस्थित होने में विफल रहता है, इसका तात्पर्य यह है कि जिस समय किसी व्यक्ति को उपस्थित होने का निर्देश दिया जाता है, और वह ऐसा नहीं करता है, तो यह धारा लागू होती है।
![](https://tahalka24x7.com/wp-content/uploads/2023/02/IMG-20230217-WA0008.jpg)
पीठ ने कहा कि प्रयुक्त भाषा से आगे जो बात निकलती है, वह यह है कि गैर-उपस्थित होने का उदाहरण धारा का उल्लंघन बन जाता है, और इसलिए अभियोजन पक्ष धारा 82 सीआरपीसी के प्रभाव से स्वतंत्र होगा। पीठ की ओर से निर्णय लिखने वाले न्यायमूर्ति करोल ने कहा कि धारा 174ए आईपीसी के तहत कार्यवाही धारा 82 सीआरपीसी से स्वतंत्र रुप से शुरु नहीं की जा सकती है। यानी, केवल उद्घोषणा जारी होने के बाद ही शुरू की जा सकती है, वे तब भी जारी रह सकती हैं। जब उक्त उद्घोषणा अब प्रभावी नहीं है।
![](https://tahalka24x7.com/wp-content/uploads/2024/05/IMG-20240531-WA0105.jpg)
पीठ ने निष्कर्ष निकाला कि हम मानते हैं कि धारा 174ए आईपीसी एक स्वतंत्र मौलिक अपराध है, जो धारा 82 सीआरपीसी के तहत उद्घोषणा समाप्त होने पर भी जारी रह सकता है। यह एक स्वतंत्र अपराध है। सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्णय पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के जून 2023 के निर्णय को चुनौती देने वाली अपील पर आया। पीठ ने कहा कि धारा 174ए आईपीसी जिसे पूर्ववर्ती आईपीसी में 2005 के संशोधन द्वारा शामिल किया गया है, एक मौलिक अपराध को शामिल करती है। जिसमें धारा 82(1) सीआरपीसी के तहत ऐसी उद्घोषणा जारी किए जाने पर तीन साल या जुर्माना या दोनों की सजा और उपधारा (4) के तहत उक्त उद्घोषणा जारी किए जाने पर सात साल और जुर्माना निर्धारित किया गया है।
![](https://tahalka24x7.com/wp-content/uploads/2021/07/IMG-20210702-WA0002-3.jpg)
पीठ ने कहा कि इस धारा का उद्देश्य किसी व्यक्ति की उपस्थिति की आवश्यकता वाले न्यायालय के आदेश की अवहेलना के लिए दंडात्मक परिणाम सुनिश्चित करना है। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि यह मानते हुए कि भारतीय दंड संहिता की धारा 174ए में निर्धारित अपराध वास्तव में स्वतंत्र है। यह देखते हुए कि यह एक मूल अपराध से उत्पन्न होता है जिसके संबंध में सीआरपीसी की धारा 82 के तहत कार्यवाही शुरु की जाती है। पीठ ने कहा कि उक्त अपराध में आरोपी को बाद में बरी कर दिया जाता है, ऐसे अपराध के तहत मुकदमे की सुनवाई कर रही अदालत के लिए कानून में यह स्वीकार्य होगा कि वह इस तरह के घटनाक्रम पर ध्यान दे और इसे कार्यवाही को समाप्त करने के आधार के रुप में माने। यदि ऐसी प्रार्थना की जाती है और मामले की परिस्थितियां ऐसा करने की मांग करती हैं।