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Wednesday, May 1, 2024

आईये जानते हैं चैत्र नवरात्रि का आध्यात्मिक एवं वैज्ञानिक महत्व…

आईये जानते हैं चैत्र नवरात्रि का आध्यात्मिक एवं वैज्ञानिक महत्व...

स्पेशल डेस्क।
राजकुमार अश्क
तहलका 24×7
                    सर्वप्रथम तहलका 24×7 के सभी सुधी पाठकों को भारतीय नववर्ष की हार्दिक बधाई एवं आने वाले वर्ष की शुभकामनाएं…
कहा जाता है कि शुद्ध मन में ही ईश्वर का वास होता है, अगर आप वाणी चरित्र और कर्म से सात्विक प्रवृत्ति के है तो आप ईश्वर के सबसे निकट हैं, ईश्वर आप में खुद ही विराजमान है। हमारा देश भारत ऋषि मुनियों मनीषियों योगियों तपस्वियों का देश रहा है इनके जप तप में आध्यात्म तो होता ही था यह वैज्ञानिकता से भी परिपूर्ण होता था, आज सारी दुनिया इस बात को मानने के लिए बाध्य हैं कि जिस चीज़ को वैज्ञानिक आज खोज रहे हैं उस चीज को भारतीय मनीषियों ने हजारों वर्ष पहले ही अपनी आध्यात्मिक शक्ति से खोज निकाला था। आज हम इसी विज्ञान और आध्यात्म से सम्बंध रखने वाले नवरात्रि पर कुछ ज्ञानवर्धक जानकारी ले कर आए हैं, उम्मीद है पाठकों को यह ज्ञानवर्धक लगेगी…
जब हम नवरात्र शब्द का प्रयोग करते हैं तो इसका अर्थ होता है वह विशेष रात्रि जिस रात्रि में शक्ति की उपासना की जाती है, क्योंकि रात्रि शब्द सिद्धि का प्रतीक माना जाता है। प्राचीनकाल से ऋषि मुनियों ने दिन की अपेक्षा रात्रि को अधिक महत्व दिया है, यही कारण है कि अधिकतर त्योहारों को रात्रि में मनाने की परम्परा है जैसे दीपावली, होलिका दहन, महाशिवरात्रि, और नवरात्रि आदि.. चैत्र नवरात्रि का धार्मिक दृष्टि से बहुत अधिक महत्व माना जाता है क्योंकि चैत्र नवरात्रि के पहले दिन ही ब्रह्मा जी ने इस सृष्टि की रचना का कार्य आरंभ किया था और आदिशक्ति का प्रादुर्भाव हुआ, इसी कारण इसे हिंदू नववर्ष भी कहते हैं।चैत्र नवरात्र के तीसरे दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप में पहला अवतार लेकर पृथ्वी की स्थापना की थी तथा भगवान राम का अवतार भी नवरात्र के नवे दिन हुआ था जिसे हम सभी रामनवमी के नाम से भी जानते हैं।
अगर हमें नवरात्र के वैज्ञानिक महत्व को समझना है तो सबसे पहले हमें नवरात्र को समझना होगा। भारतीय मनीषियों ने पूरे वर्ष में चार नवरात्र का उल्लेख किया है जिसमें कि दो गुप्त नवरात्र होतें है तथा दो सदृश नवरात्र… विक्रम संवत् के पहले दिन यानि चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नौ दिन अर्थात नवमी तक. इसी प्रकार ठीक छ: माह बाद आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से महानवमी तक नवरात्र माना जाता है, जब कि इनके बीच दो नवरात्र होतें जिन्हें ही गुप्त नवरात्र माना जाता है जो कि तंत्र मंत्र की सिद्धी के लिए विशेष उपयोगी होता है। शारदीय नवरात्र की अपेक्षा चैत्र नवरात्र का विशेष महत्व होता है लोग अपनी आध्यात्मिक और मानसिक शक्ति संचय करने के लिए अनेकों प्रकार के व्रत, यज्ञ, संयम, नियम हवन पूजन योग साधना करतें हैं. यहाँ तक कि कुछ साधक एक ही आसन में बैठ कर पूरी रात बिता देते हैं. मगर आजकल अधिकांश उपासक शक्ति पूजा रात्रि में न करके दिन में ही करना ज्यादा उचित समझते हैं जबकि ऐसा होना नहीं चाहिए।

# वैज्ञानिक आधार

दो ऋतुओं की जब संधि होती है तो उस समय बीमारियों का प्रकोप भी बढ़ जाता है तमाम तरह के रोगाणुओं के आक्रमण की संभावना होती है और मानव शरीर उन रोगाणुओं से लड़ने में अपने आपको शिथिल पाता है अतः उस समय अपने आपको स्वस्थ रखने के लिए तथा अपने तन मन को शुद्ध एवं निर्मल रखने के लिए हमारे मनिषियो ने इस प्रकार के व्रत का प्राविधान बनाया है कि पूजा पाठ के साथ साथ आप अपने आपको स्वस्थ भी रख सकते हैं। इस समय जो सात्विक भोजन ग्रहण किया जाता है जैसे फल, सूखे मेवे, दही दूध, शुद्ध देशी घी आदि, जब हम हवन करते हैं तो जो उसमें समिष्ठा डाली जाती है उसमें भी तमाम तरह की औषधीय गुण होते हैं जिससे वातावरण शुद्ध होता है, और हमारे शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता भी उत्पन्न करता है और मौसम में होने वाली छोटी मोटी बीमारियों से हमारी रक्षा भी करता है। व्रत रखने का एक विशेष लाभ यह भी होता है कि इससे हमारी पाचन क्रिया दुरूस्त रहती है, और भोजन के प्रति हमारा आकर्षण बढ़ता है।

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